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| भद्रबाहु संहिता ।
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चतुर्थी को (ऐरावणे) ऐरावण वीथि में दिखे तो (महावर्ष स उच्यते) वह वर्ष महावर्ष होता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा प्रकृतिस्थ होकर उज्ज्वल कान्तिवाला अच्छी रश्मि वाला सुन्दर श्री के समान होकर चतुर्थी को ऐरावणपथ में दिखे तो समझो वर्ष बहुत ही उत्तम होगा, महावर्ष कहा जायगा ।। ३० 11
श्यामश्छिद्रश्च पक्षादौ यदा दृश्यते यः सितः।
चन्द्रमा गैरलं घोरं नृपाणां कुरुते तदा ॥३१॥ (यदा) जब (सितः) चन्द्रमा (श्यामश्छिद्रश्चपक्षादौ) काला और छिद्र युक्त कृष्ण पक्ष में दिखे तो (चन्द्रमां) ऐसा चन्द्रमा (तदा) तब (रौरवं घोरं नृपाणां) राजाओं में घोर रौरव (कुरुते) करता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा काला छिद्र से युक्त कृष्ण पक्ष में दिखे तो समझो राजाओं में घोर युद्ध होगा ।। ३१ ।।
धनुषा यदि तुल्य: स्यात् पक्षादौ दृश्यते शशी।
ब्रूयात् पराजयं पृष्ठे युद्धं चैव विनिर्दिशेत्॥३२।। यदि (पक्षादौ) प्रथम पक्ष में (शशी) चन्द्रमा (धनुषा) धनुष (तुल्यः) समान (दृश्यते) दिखाई पड़े तो (पराजयं) पराजय होती है (चैव) और (पृष्टे युद्धं ब्रूयात्) पीछे से युद्ध होता है ऐसा कहे (विनिर्दिशेत्) ऐसा निर्देशन किया गया है।
भावार्थ-यदि पक्ष आदि में चन्द्रमा धनुषाकार दिखे तो अवश्य पराजय होती है। और पीछे से युद्ध होता है ऐसा कहना चाहिये॥३२॥
वैश्वानरपथेष्टम्यां तिर्यस्थो वा भयं वदेत् ।
परस्परं विरुध्यन्ते नृपाः प्रायः सुर्वचसः ॥३३॥ (वैश्वानरपथेष्टम्यांतिर्यस्थो) यदि अष्टमी का चन्द्रमा तिर्यक् होकर वैश्वानर वीथि में दिखे तो (भयं वदेत्) भय होगा और (नृपाः) राजा लोग (प्रायः) प्राय (सुर्वचसः) अभिमानवस (परस्परं विरुध्यन्ते) परस्पर विरोध करते हैं।
भावार्थ-यदि अष्टमी का चन्द्रमा तिर्यक् होकर वैश्वानरपथमें दिखे तो भय होगा राजा लोग प्राय: परस्पर लड़ते रहेंगे। ३३ ।।