________________
६४१
त्रयोविंशतितमोऽध्यायः
जब (चतुरजास्तु) चतुरंग (सोमो) चन्द्रमा (वैश्वानरपंथ प्राप्ते) वैश्वानर वीथि में गमन करता हुआ (दृश्यते) दिखे तो (कृल्लोके विनाश) तब लोक में विनाश होता है (वाऽग्नि भयङ्करः) व भयंकर अग्नि काण्ड होता है।
भावार्थ-जब चतुरंग चन्द्रमा वैश्वानर पथ में गमन करता हुआ दिखाई पड़े तब लोक में महाविनाश होता है, और भयंकर अग्नि काण्ड होता है।। २७॥
अजवीथीमागते चन्द्रे क्षुतृषाग्नि भयं नृणाम्।
विवर्णो हीनरश्मिा भद्रबाहुवचो यथा ॥२८॥ (विवर्णो हीनरश्मि वा) विवर्ण या हीन रश्मि वाला (चन्द्रे) चन्द्रमा (अजवीथिमागते) अजवीथि में आता हुआ दिखे तो (नृणाम्) मनुष्यों को (क्षुतृषाग्नि भयं) क्षुधा का भय और अग्नि भय होता ऐसा (भद्रबाहुवचो यथा) भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा विवर्ण या हीन रश्मि वाला दिखता हुआ अजवीथि में गमन करे, तो क्षुधा का भय और अग्नि भय होता है। ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है॥२८॥
गोवीथ्यां नागवीथ्यां च चतुर्थ्यां दृश्यते शशी।
रोगशस्त्राणि वैराणि वर्षस्य च विवर्धयेत्॥२९ ।। जब (शशी) चन्द्रमा (चतुर्थ्यां) चतुर्थी को (गोवीथ्यां च नागवीथ्यां) गोवीथि में और नागवीथि में (दृश्यते) दिखाई पड़े तो (वर्षस्य) वर्ष में (रोग शस्त्राणि वैराणि) रोग, शस्त्र और वैर की (विवर्धयेत्) वृद्धि होती है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा चतुर्थी को गोवीथि और नागवीथि में दिखाई पड़े तो वर्ष में रोग शस्त्र और वैर की वृद्धि होती है॥२९॥
एरावणे चतुर्थस्थो महाधर्षः स उच्यते।
चन्द्रः प्रकृति सम्पन्नः सुरश्मिः श्रीरिवोज्ज्वलः ॥३०॥ यदि (चन्द्रः) चन्द्रमा (प्रकृतिसम्पन:) प्रकृति सम्पन्न होकर (सुरश्मिः श्रीरिवोज्ज्वल:) सुरश्मिवाला हो सुन्दर श्री के समान जिसकी कान्ति हो और (चतुर्थस्थो)