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भद्रबाहु संहिता ।
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वृश्चिक, कुम्भ और कर्क राशि पर चन्द्रमा के रहने से १२॥ आदक प्रमाण वर्षा होती है। कर्क राशि में प्रविष्ट होते हुए सूर्य को यदि बृहस्पति पूर्ण दृष्टिसे देखे अथवा तीन चरण दृष्टिसे देखे तो अच्छी वर्षा होती है। श्रावणके महीने में यदि कर्क संक्रान्ति के समय मेध खूब छाये हों तो सात महीने तक सुभिक्ष होता है।
और अच्छी वर्षा होती है। मंगल के दिन सूर्यकी कर्क संक्रान्ति और शनिवार को मकर संक्रान्ति का होना शुभ नहीं है। स्वाति, ज्येष्ठा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा इन नक्षत्रों के पन्द्रहवें मुहूर्त में मकर राशि या सूर्यके प्रविष्ट होने से अशुभ फल होता है। पुनर्वसु, विशाखा, रोहिणी और तीनों उत्तरा नक्षत्रोंके चौथे या पांचवें मुहर्त में सूर्य प्रवेश करे तो शुभ फल होता है। सूर्यकी संक्रान्ति के दिन से ग्यारहवें, पच्चीसवें, चौथे या अठारहवें दिन मास्या का होना सुरिक्षा सूचक गादि पहली संक्रान्ति का नक्षत्र दूसरी संक्रान्ति में आवे तो शुभ फल होता है, किन्तु उस नक्षत्रसे दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवे नक्षत्र शुभ नहीं होते।
सूर्य संक्रान्तियों के अनुसार फलादेश--मेषकी संक्रान्ति के दिन तुलाराशि का चन्द्रमा हो तो छ: महीने में धान्य की अधिकता करता है। सभी प्रदेशों में सुभिक्ष होती है। बंगाल और पंजाब में चावल, गेहूँकी उपज अधिक होती है। देश के अन्य सभी भागों में भी मोटे धान्योंकी उत्पत्ति अधिक होती है। मेष संक्रान्ति प्रात:काल होनेपर शुभ, मध्याह्न में होने से निकृष्ट और सन्ध्याकाल में होने से अतिनिष्कृट फल होता है। मेष संक्रान्ति रात्रि में प्रविष्ट हो तो साधारणत: अशुभ फल होते है। यदि संक्रान्ति काल में अश्विनी नक्षत्र क्रूर ग्रहों द्वारा विद्ध हो तो अशुभ फल होता है। राष्ट्र में अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं। वर्षा की भी कमी रहती है। मेष संक्रान्ति, कर्क संक्रान्ति और मकर संक्रान्ति का फल एक वर्ष तक रहता है। यदि ये तीनों संक्रान्तियाँ अशुभ वार, अशुभ घटियों में आती हैं, तो देश में नाना प्रकार के उपद्रव होते हैं। शनिवार को मेष संक्रान्ति पड़ने से जगत् में अशान्ति रहती है। चीन और रूस में अन्नादि पदार्थोंकी बहुलता होती है, पर आन्तरिक अशान्ति इन राष्ट्रों में भी बनी रहती है।
वृष की संक्रान्ति में वृश्चिक राशि चन्द्रमाके रहने से चार महीने तक अन्न लाल होता है। सुभिक्ष और शान्ति रहती है। खाद्यान्नोंकी बहुलता सभी देशों और