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द्वाविंशतितमोऽध्यायः
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राष्ट्रों में रहती है। काशी, कन्नौज और विदर्भ में राजनैतिक संघर्ष होता है। वृषकी संक्रान्ति बुधवार को होने से घी के व्यापार में लाभ होता है। शुक्रवार को वृषकी संक्रान्ति हो तो रस पदार्थों की महंगी होती है। शनिवार को इस संक्रन्ति के होने से अन्न का भाव तेज होता है। मिथुनको संक्रान्ति को धनुका चन्द्रमा हो तो तिल, तैल, अन्नसंग्रह करने से चौथे महीने में लाभ होता है। यदि चन्द्रमा क्रूर ग्रह सहित हो तो लाभ के स्थान में हानि होती है। कर्ककी संक्रान्ति में मकर का चन्द्रमा हो तो दुर्भिक्ष होता है। इस योगके चार महीनेके उपरान्त धनिक भी निर्धन हो जाता है। सभीकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती जाती है। देश के कोने-कोने में अन्न की आवश्यकता प्रतीत होती है। जिन राज्यों, प्रदेशों और देशों में अच्छा अनाज उपजता है, उनमें भी अन्न की कमी हो जाने से अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं। कन्याकी संक्रान्ति होने पर मीनके चन्द्रमा में छत्रभंग होता है। उत्तरप्रदेश, बंगाल, बिहार और दिल्ली राज्य में अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं। बम्बई और मद्रास में अनेक प्रकार की कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है। तुलाकी संक्रान्ति में मेषका चन्द्रमा हो तो पांच महीने में व्यापार में लाभ होता है। अन्न की उपज साधारण होती है। जूट, सूत, कपास और सनकी फसल साधारण होती है। अत: इन वस्तुओंके व्यापार में अधिक लाभ होता है। वृश्चिक संक्रान्ति में वृषराशि का चन्द्रमा हो तो तिल, तेल तथा अन्न का संग्रह करना उचित है। इन वस्तुओंके व्यापार में अधिक लाभ होता है। धनुकी संक्रान्ति में कर्क का चन्द्रमा हो तो कुलटाओंका विनाश होता है। कपास, घी, सूत में पाँचवें मास में भी लाभ होता है। कुम्भकी संक्रान्ति में सिंहका चन्द्रमा हो तो चौथे महीने में अन्न लाभ होता है। मीनकी संक्रान्ति में कन्याका चन्द्रमा होने पर प्रत्येक प्रकार के अनाज में लाभ होता है। अनाजकी कमी भी साधारणतः दिखलाई पड़ती है, किन्तु उस कमी को किसी प्रकार पूरा किया जा सकता है। जिस वार की यदि संक्रान्ति हो, यदि उसी वार में अमावस्या भी पड़ती हो तो यह खपर योग कहलाता है। यह योग सभी प्रकार के धान्योंको नष्ट करनेवाला है। यदि प्रथम संक्रान्ति को शनिवार हो, दूसरीको रविवार, तीसरीको सोमवार, चौथीको मंगलवार, पाँचवींको बुधवार, छठवींको गुरुवार, सातवींको शुक्रवार, आठवींको शनिवार, नवमीको रविवार, दसवींको सोमवार,