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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ-यदि सूर्योदय में पूर्व दिशा में धड़ से ढका हुआ दिखलाई पड़े, तो वह सूर्य अंग, बंग, कलिंग, काशी, कर्नाटक, मेखाला, मगध, कटक, कालावक्रोष्ट्र कर्णिका, माहेन्द्र संवृत आदि देशोंका घात करता है।।५-६।।
कबन्धो वामपीतो वा दक्षिणेन् यदा रविः। चर्विलान् मलयानुड्रांन् स्त्रीराज्यं वनवासिकान् ।।७॥ किलिन कुना टांश्च ताम्रकांस्तथैव च।
स वक्र चक्र क्रूरांश्च कुणपांश्च स हिंसति ॥८॥ (यदा रवि:) जब सूर्य (दक्षिणेन्) दक्षिण में (कबन्धो वामपीतो वा) धड़ से सहित वाम भाग में पीला दिखे तो (चर्विलान्) चर्विल (मलायानुड्रांन्) मलयदेश, उड्रदेश, (स्त्रीराज्यं वनवासिकान्) स्त्री राज्य और वनवासी तथा (किष्किन्धाश्च) किष्किन्धा (कुनाटांश्च) कुनाट (ताम्रकर्णास्तथैव च) ताम्र वर्ण तथा और भी (स) वह (वक्र चक्र क्रूरांश्च) वक्र चक्र क्रूर (कुणपांश्च स हिंसति) कुणपादियों की हिंसा करता है।
भावार्थ-जब सूर्य दक्षिण के वाम भाग में धड़ (कबन्ध) रहित पीला दिखे, तो चर्विल, मलय, उड्रान, स्त्रीराज्य, वनवासी, किष्किन्धा, कुनाट, ताम्रवर्ण और उसी प्रकार वक्र, चक्र, क्रूर कुणपादियों की हिंसा करता है॥७-८॥
अपरेण च कबन्धस्तु दृश्यते द्युतितो यदा। युगन्धरावणं मरुत्, सौराष्ट्रान् कच्छगैरिजान् ॥९॥ कोकणानपरान्तांश्च भोजांश्च कालजीविनः।
अपरांस्तांश्च सर्वान् वै निहल्यात् तादृशो रविः॥१०॥ (यदा) जब (रवि:) सूर्य (तादृशो) उसी प्रकार (अपरेण च कबन्धस्तु) पश्चिम दिशा में कबन्ध रूप (द्युतितो दृश्यते) प्रकाशमान दिखलाई पड़े तो (युगन्धरावणं मरुत) युगन्धरायण, मरुत, (सौराष्ट्रान्) सौराष्ट्र (कच्छ गैरिजान्) कच्छ, गैरिज, (कोकणान्) कोंकण (परान्ताश्च) अपर (भोजांश्च) भोज और (कालजीविनः) काल जीवि, (अपरांस्तांश्चसर्वान्) और अपरदेशवासी सभी को (वैनियन्यात) मारता है।
भावार्थ-जब सूर्य पश्चिम दिशा में कबन्ध रूप प्रकाशमान दिखलाई पड़े