________________
६२५
द्वाविंशतितमोऽध्यायः
--
. .
.
--
तो, युगन्धरायण, मरुत, सौराष्ट्र, कच्छ, गैरिज, कोंकण, अपर भोज, काल जीवि और अपर देशवासियों का घात करता है॥९-१० ।।
उत्तरे उदयोऽर्कस्य कबन्धसशस्तदा। क्षुद्रकामाल वाह्नीक: सिन्धु सौवीरदर्दुरः ।।११॥ काश्मीरान् दरदांश्चैव पालवां मागधांस्तथा।
साकेतान् कोशलान् काञ्चीमहिच्छवं च हिंसति॥१२॥ (उत्तरे उदयोऽर्कस्य) सूर्य के उदय होने पर उत्तर दिशा में (कबन्ध सदृशः) कबन्ध सदृश दिखे तो (क्षुद्रकामालवाहीक:) शुद्रक, माल, वाहीक, (सिन्धु) सिन्धु (सौवीर) सौवीर (द१र:) दर्दुर (काश्मीरान्) काश्मीर (दरदांश्चैव) दरद और भी (पालवां) पल्लव (मागधांस्तथा) मागध तथा (साकेतान्) साकेत (कौशलान्) कौशल (काञ्ची) काञ्ची (महिच्छवं च हिंसति) और महिच्छव की हिंसा करता है।
भावार्थ- यदि सूर्योदय समय उत्तर दिशा में कबन्ध समान दिखे, तो शूद्रक, माल, माझील, शिशु, सहावीत, दर्दुरा, काश्मीर, दरद, पल्लव, मगध तथा साकेत कौशल, कांची, महिच्छव आदि का घात होता है॥११-१२॥
कबन्धमुदये भानोर्यदा मध्ये प्रदृश्यते।
मध्यमा मध्यसाराच पीडयन्ते मध्यदेशजाः॥१३॥ (यदाभानोः) जब सूर्य (उदये) उदय होते समय (मध्ये) मध्य में (कबन्धं प्रदृश्यते) कबन्ध दिखे तो (मध्यमा मध्यसाराश्च) मध्य में भी मध्य (मध्यदेशजा: पीडयन्ते) देश के राजा को पीड़ा देता है।
भावार्थ-जब सूर्योदय समय में सूर्य के मध्य में कबन्ध दिखलाई पड़े, तो मध्य के अन्दर और भी मध्य देश के राजाकी मृत्यु होती है ॥१३ ।।
नक्षत्रमादित्यवर्णो यस्य दृश्येत भास्करः।
तस्य पीडा भवेत् पुंसः प्रयत्नेन शिवः स्मृतः॥१४॥ (यस्य) जिस व्यक्ति के (नक्षत्रं) नक्षत्र पर (आदित्य वर्णो भास्कर: दृश्येत) लाल वर्ण का सूर्य दिखलाई पड़े तो (तस्य) उस (पुंस:) पुरुष को (पीड़ा भवेत्) पीड़ा होती है (प्रयत्नेन शिवः स्मृतः) बहुत प्रयत्न करने पर पीड़ा दूर होती है।