________________
भद्रबाहु संहिता
५८६
(पर्वणि) पूर्णिमा को (राहुः) राहु (लिङ्गान्यस्य) के चिह्न में (प्रवासे) गमन करे (यदागच्छे) जब जाता है (प्रशस्तो) प्रशस्त होता है तब (राजराष्ट्र विनाशन:) राजा और राष्ट्र का विनाश होता है।
भावार्थ---पूर्णिमा को राहु के चिह्न में जब जाता है तब राजा और राष्ट्र का नाश होगा ॥६१॥
यतो राहप्रमथने ततो यात्रा न सिध्यति।
प्रशस्ता: शकुना यत्र सुनिमित्ता सुयोषितः ॥६२॥ (यतो राहुप्रमथने) जब राह प्रमथन करे तो (ततो यात्रा न सिध्यति) उसकी यात्रा सिद्ध नहीं होती है। चाहे (प्रशस्ता:) प्रशस्त हो (शकुना) अच्छे शकुन हो (सुनिमित्ता) सुनिमित्त (सुयोषितः) सुयोषित हो तो भी नहीं होती है।
भावार्थ-जब राहु प्रथमन करे तब चाहे वह प्रशस्त अच्छे शकुन वाला, सुनिमित्त रूप हो तो भी उसकी यात्रा सिद्ध नहीं होती है। ६२ ।।
राहुश्च चन्द्रश्च तथैव सूर्यो यदा नस्युः सर्वेपरस्परघ्नाः।
काले च राहुर्भजते रवीन्दूः तदा सुभिक्षं विजयश्च राज्ञः ।। ६३॥ (राहुश्चचन्द्रश्च तथैव सूर्योयदा) जब राहु चन्द्र और सूर्य (नस्युः सर्वेपरस्परघ्ना:) घात न करे तो (काले च राहुर्भजतेरवीन्दः) तथा समय पर सूर्य और चन्द्रमा का राहु योग करे तो (तदासुभिक्षविजयश्चराज्ञः) तब सुभिक्ष होता है राजा की विजय
होगी।
भावार्थ-जब राहु सूर्य और चन्द्र परस्पर घात करे तो समय पर सूर्य और चन्द्रमा का राहु योग करे तो राजाओं की विजय और देश में सुभिक्ष होता है। ६३॥
विशेष—इस अध्याय में आचार्य श्री ने राहु चार का विशेष वर्णन किया है। राहु के संचार से भी शुभाशुभ मालूम पड़ता है, कल्याण व सुख का कारण बनता है।
राहु सफेद, लाल, पीला, काला वर्ण का होता है क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के लिये शुभाशुभ फल देता है।