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विंशतितमोऽध्यायः
हन्युः ) क्षत्रियों का नाश करता है (सितोद्विजान् ) सफेद हो तो ब्राह्मणों का हनन करता है ( पीतोवैश्यान् ) पीला हो तो वैश्यों का हनन् करता है (कृष्णः शूद्रान् ) काला हो तो शूद्रों का हनन करता है। (द्विवर्णास्तु जिघांसति) और द्विवर्णों का भी हनन करता है।
भावार्थ — यदि राहु और चन्द्रमा लाल वर्ण का हो तो क्षत्रियों का नाश होता है, सफेद हो तो ब्राह्मणों का हनन करता है, पीला हो तो वैश्यों का नाश करता है काला हो तो शूद्रों का व द्विवर्णों का नाश करता है ॥ ५८ ॥
पीडितो हन्ति नक्षत्रं यस्य यद्यतः । पापनिमित्तश्च
( रूक्षः) रूक्ष (पापनिमित्तश्च) पाप निमित्त (विकृतश्च) विकृत (चन्द्रमाः) चन्द्रमा ( रूक्षः) रूक्ष हो ( पापनिमित्तश्च ) पापनिमित्तों से सहित हो ( विकृतश्च) विकृत होकर ( यस्य नक्षत्रं हन्ति ) जिसके नक्षत्र का घात करे (चन्द्रमा: पीडितो) उस नक्षत्र वाले का अशुभ होता है।
भावार्थ- -जब चन्द्रमा रूक्ष, पापरूप, निमित्तों से सहित निकल कर जिसके नक्षत्र का घात करता है तो उसका अशुभ होता है ॥ ५९ ॥
चन्द्रमाः
रूक्ष:
विकृतश्चविनिर्गतः ॥ ५९ ॥
प्रसन्नः साधुकान्तश्च दृश्यते सुप्रभः
शशी । यदा तदा नृपान् हन्ति प्रजां पीतः सुवर्चसा ॥ ६० ॥
(शशी) चन्द्रमा यदि ( प्रसन्नः ) प्रसन्न दिखे ( साधुकान्तश्च ) सुन्दर कान्ति और (सुप्रभः) सुप्रभावाला (दृश्यते) दिखे तो ( यदा तदा नृपान् हन्ति) जभी-तभी राजाओं का हनन करता है (प्रजां पीत् सुवर्चसा ) पीत और तेजस्वी दिखे तो प्रजा का धात करता है ।
भावार्थ — यदि चन्द्रमा प्रसन्न दिखे, कान्तिवाला हो सुप्रभावाला हो
सुन्दर तब राजा को मारता है पीला दिखे तो प्रजा का घात करता है ॥ ६० ॥
राज्ञो राहुः प्रवासे यानि लिङ्गान्यस्य पर्वणि । यदा गच्छेत् प्रशस्तो वा राज राष्ट्रविनाशनः ॥ ६१ ॥