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सप्तदशोऽध्यायः
स्त्रियोंको भय, विधवाओंकी संख्याकी वृद्धि, वर्षाका अभाव अथवा अल्प वर्षा, ईति-भीति, फसलकी कमी एवं हैजेका प्रकोप व्यापकरूपसे होता है। बंगाल, राजस्थान
और गुजरातमें अकालकी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। चैत्रमें गुरुका राशि-परिवर्तन होनेसे नारियोंको सन्तानकी प्राप्ति सुभिक्ष, उत्तम वर्षा, नाना व्याधियों आशंका एवं संसारमें राजनैतिक परिवर्तन होते हैं। जापान, जर्मन, अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, चीन, श्याम, बर्मा, आस्ट्रेलिया, मलाया आदिमें मनमुटाव होता है, राष्ट्रोंमें भेदनीति कार्य करती है गुटबन्दीका कार्य आरम्भ हो जाने से परिवर्तन के चिह्न स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगते है। वैशाख मास में गुरु का राशि परिवर्तन होने से धर्मकी वृद्धि, सुभिक्ष, अच्छी वर्षा, व्यापारिक उन्नति, देशका आर्थिक विकास, दुष्ट-गुण्डे-चोर आदिका दमन, सज्जनोंको पुरस्कार एवं खाद्यान्नका भाव सस्ता होता है। घी, गुड़, चीनी आदिका भाव भी सस्ता ही रहता है। उक्त प्रकारके गुरुमें फलोंकी फसल में कमी आती है। समयानुकूल यथेष्ट वर्षा होती है। जूट, तम्बाकू और लोहेकी उपज अधिक होती है। विदेशोंसे भारतका मैत्री सम्बन्ध बढ़ता है तथा सभी राष्ट्र मैत्री सम्बन्धमें आगे बढ़ना चाहते हैं। ज्येष्ठमासमें गुरुके राशि-परिवर्तन होनेसे धर्मात्माओंको कष्ट, धर्मस्थानों पर विपत्ति, सत्क्रियाका अभाव, वर्षाकी कमी, धान्यकी उत्पत्तिमें कमी एवं प्रजामें अनेक प्रकार की व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। मध्य भारत, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्यमें सूखा पड़ता है, जिससे इन राज्यों की प्रजा को अधिक कष्ट उठाना पड़ता है। उक्त मासमें गुरुका राशि परिवर्तन कलाकारोंके लिए मध्यम और योद्धाओंके लिए श्रेष्ठ होता है। आषाढ़मासमें बृहस्पतिका राशि-परिवर्तन हो तो राज्यवालोंको क्लेश, मुख्य मन्त्रियों को शारीरिक कष्ट, ईति-भीति, वर्षाका अवरोध, फसलकी क्षति, नये प्रकारकी क्रान्ति एंव पूर्वोत्तर प्रदेशोंमें उत्तम वर्षा होती है। दक्षिणके प्रदेशोंमें भी उत्तम वर्षा होती है। मलवारमें फसलमें कुछ कमी रह जाती है। गेहूँ, धान्य, जौ और मक्काकी उत्पत्ति सामान्यतया अच्छी होती है। श्रावणमासमें गुरुका राशि-परिवर्तन होनेसे अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, देशका आर्थिक विकास, फल-फूलोंकी वृद्धि, नागरिकोंमें उत्तेजना, क्षेम और आरोग्य फैलता है। भाद्रपद और आश्विनमासमें गुरुके राशि परिवर्तन होने से क्षेम, श्री, आयु,