________________
भद्रबाहु संहिता
आरोग्य एवं धन-धान्यकी वृद्धि होती है। अच्छी वर्षा समयानुकूल होती है। जनताको आर्थिक लाभ होता है तथा सभी मिलकर देशके विकासमें योगदान देते हैं।
द्वादश राशि स्थित गुरुफल-मेष राशिमें बृहस्पति के होनेसे चैत्रसंवत्सर कहलाता है। इसमें खूब वर्षा होती है, सुभिक्ष होता है। वस्त्र, गुड़, ताँबा, कपास, मूंगा आदि पदार्थ सस्ते होते हैं। घोड़ों को पीड़ा, महामारी, ब्राह्मणों को कष्ट, तीन महीनों तक जनसाधारण को भी कष्ट होता हैं। भाद्रपद मासमें गेहूँ, चावल, उड़द, घी सस्ते होते हैं, दक्षिण और उत्तरमें खण्डवृष्टि होती है। दक्षिणोत्तर प्रदेशोंमें दुर्भिक्ष, दो महीनेक पश्चात् वर्षा होती है। कार्तिक और मार्गशीर्ष मासमें कपास, अन्न, गुड़ महँगा होता है, घीका भाव सस्ता होता है, जूट, पाटका भाव महँगा होता है। पौष मासमें रसोंका भाव महंगा, अन्नका भाव सस्ता, गुड़-धीका भाव कुछ महँगा होता है। एक वर्षमें यदि बृहस्पति तीन राशियोंका स्पर्श करे तो अत्यन्त अनिष्ट होता है।
वृषराशिमें गुरुके होनेसे वैशाखमें वर्ष माना जाता है। इस वर्ष में वर्षा अच्छी होती है, फसल भी उत्तम होती है। गेहूँ, चावल, मूंग, उड़द, तिल के व्यापारमें अधिक लाभ होता है। श्रावण और ज्येष्ठ इन दो महीनोंमें सभी वस्तुएँ लाभप्रद होती है। इन दोनों महीनों में वस्तुएँ खरीद कर रखनेसे अधिक लाभ होता है। कार्तिक, माघ और वैशाख में घी का भाव तेज होता है। आषाढ़, श्रावण और आश्विन में अच्छी वर्षा होती है, भादों के महीन में वर्षा का अभाव रहता है। रोग उत्पत्ति इस वर्ष में अधिक होती है। पूर्व प्रदेशोंमें मलेरिया, चेचक, निमोनिया, हैजा आदि रोग सामूहिक रूपसे फैलते हैं। पश्चिमके प्रदेशोंमें सूखा होनेसे बुखार का अधिक प्रसार होता है। आषाढ़ मासमें बीजवाले अनाज महगे और अवशेष सभी अनाज सस्ते होते हैं। गुड़का भाव फाल्गुन से महंगा होता है और अगले वर्ष तक चला जाता है। घी का भाव घटता-बढ़ता रहता है। चौपार्यों को कष्ट अधिक होता है। श्रावण और भाद्रपद दोनों महीनो में पशुओं में महामारी पड़ती है, जिसे मवेशियोंका नाश होता है।
मिथुनराशि पर बृहस्पतिके आने से ज्येष्ठ नामक संवत्सर होता है। इसमें