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भद्रबाहु संहिता
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वृषराशि का गुरु पाँच महीने तक वक्री हो तो, गाय, बैल चौपाए, बर्तन आदि तेज होते हैं, धान्यों का संग्रह करना चाहिये।
गुरु तीव्र गति हो और शनि वक्री हो तो विश्वमें हा हाकार मचता है। मेषराशि में गुरु का उदय हो तो दुर्भिण मरणादि होते हैं।
इसी राशि में गुरु अस्त हो तो, थोड़ी वर्षा बिहार, बंगाल, आसाम में सुभिक्ष, राजस्थान में पंजाब में दुष्काल होता है। इत्यादि उदय अस्त वक्री का फल समझलेना चाहिये। आगे आरा वाले एडित जी का अभिप्राय भी जानकारी के लिये लिखता हूँ।
विवेचन-पास के अनुसार गुरु के राशि परिवर्तन का फल-यदि कार्तिक मासमें गुरु राशि परिवर्तन करे तो गायोंको कष्ट, शस्त्र-अस्त्रोंका अधिक निर्माण, अग्निभय, साधारण वर्षा, समर्पता, मालिकोंको कष्ट, द्रविड़ देशवासियोंको शान्ति, सौराष्ट्र के निवासियोंको साधारण कष्ट, उत्तर प्रदेश वासियोंको सुख एवं धान्य की उत्पत्ति अच्छी होती है। अगहनमें गुरुके राशिपरिवर्तन होनेसे अल्प वर्षा, कृषिकी हानि, परस्परमें युद्ध, आन्तरिक संघर्ष, देशके विकास में अनेक रुकावटें एवं नाना प्रकार के संकट आते हैं। बिहार, बंगाल, आसाम आदि पूर्वीय प्रदेशों में वर्षा अच्छी होती है तथा इन प्रदेशोंमें कृषि भी अच्छी होती है। उत्तरप्रदेश, पंजाब और सिन्ध में वर्षाकी कमी रहती है, फसल भी अच्छी नहीं होती है। इन प्रदेशों में अनके प्रकार के संघर्ष होते है, जनता में अनेक प्रकार की पार्टियाँ होती है। तथा इन प्रदेशों में महामारी भी फैलती है। चेचक का प्रकोप उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, मध्यभारत और राजस्थानमें होता है। पौष मासमें बृहस्पतिके राशि परिवर्तनसे सुभिक्ष, आवश्यकतानुसार अच्छी वर्षा, धर्मकी वृद्धि, क्षेम, आरोग्य और सुखका विकास होता है। भारतवर्षके सभी राज्योंके लिए यह बृहस्पति उत्तम माना जाता है। पहाड़ी प्रदेशोंकी उन्नति और अधिक रूपमें होती है। माघ मासमें गुरुके राशिपरिवर्तनसे सभी प्राणियोंको सुख-शान्ति, सुभिक्ष, आरोग्य और समयानुकूल यथेष्ट वर्षा एवं सभी प्रकारसे कृषिका विकास होता है। ऊसर भूमिमें भी अनाज उत्पन्न होता है। पशुओंका विकास और उन्नति होती है। फाल्गुनमासमें गुरुके राशि-परिवर्तन होनेसे