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सप्तदशोऽध्यायः
( यदि ) जब ( गुरु : ) गुरु (स्निग्ध) स्निग्ध (प्रसन्नो ) प्रसन्न (विमलो ) विमल (अभिरूपो ) सुन्दर ( महाप्रमाणो ) महाप्रयाण रूप ( द्युतिमान् सपीतः) प्रकाशमान पीला (चोत्तर मार्गचारी ) और उत्तर मार्ग में गमन करने वाला हो तो ( तदा) तब ( प्रशस्ता: ) शुभ है ( प्रतिबद्ध हन्ता ) प्रति पक्षियों का विनाश करता है।
भावार्थ - जब गुरु स्निग्ध हो, प्रसन्न हो, विमल हो, सुन्दर हो, महाप्रमाण रूप हो, प्रकाशमान हो, पीला हो, उत्तरमार्ग में गमन करने वाला हो तब शुभ होता है और प्रतिपक्षियों का विनाश करने वाला होता है ॥ ४६ ॥
विशेष- - अब यहाँ पर गुरु के अस्त, उदयका फल वर्णन करते हैं, गुरु भी अपने- अपने किसी नक्षत्र पर ही उदय या अस्त होता है उसका फल भी विभिन्न प्रकार से होता है, इसका उदय अस्त भी देश, नगर, राष्ट्र, प्रजा, वृषा, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, सुख, दुःख, हानि, लाभ आदि कराता है।
यह ध्यान रखना परम आवश्यक है कि गुरु का उदय किस नक्षत्र पर हुआ या किस नक्षत्र पर कसा हुआ उसका क्या होगा ।
गुरु के अस्त या उदय होने के समय में विभिन्न' वर्ण होते हैं जैसे मेचक वर्ण, कपिल वर्ण, श्यामवर्ण, पीतवर्ण, नीलवर्ण, रक्तवर्ण, धूम्रवर्ण आदि होते हैं।
गुरु उत्तरमार्ग व मध्यमार्ग के अनुसार संचार करता है, उत्तरमार्ग के नौ नक्षत्र, मध्यममार्ग के नौ नक्षत्र होते हैं। दक्षिणमार्ग के नौ नक्षत्र होते है । इस प्रकार गुरु के नौ नक्षत्रों के तीन मार्ग बतलाये हैं ।
महीने के अनुसार गुरु परिवर्तन का फल, बारह राशि स्थित गुरु फल गुरु के वक्री होने का विचार गुरु नक्षत्र भोग विचार आदि का वर्णन इस अध्याय में किया गया है।
श्रावण महीने में गुरु परिवर्तन होता दिखे तो अच्छी वर्षा होती है, सुभिक्ष होता है, देश का आर्थिक विकास, फल और फलों की वृद्धि, नागरिकों में उत्तेजना, क्षेम और निरोगता होती है।
राशि में गुरु के होने से खूब वर्षा होती है, सुभिक्ष होता है, वस्त्र, गुड़, ताँबा, कपास, मूंगा आदि पदार्थ सस्ते होते हैं घोड़ो को पीड़ा, महामारी ब्राह्मणों को कष्ट तीन महीने तक जनता की भी कष्ट होता है ।