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भद्रबाहु संहिता
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यस्मिन् यस्मिंस्तु नक्षत्रे कुर्यादसस्तमनोदयौ।
तस्मिन् देशान्तरं द्रव्यं हन्यात् चाथ विनाशयेत् ॥३१॥ (यस्मिन् यस्मिस्तु नक्षत्रे) जिस-जिस नक्षत्र पर (कुर्यादस्तमनोदयौ) शनि अस्त या उदय हो तो (तस्मिन् देशान्तरं द्रव्यं) उस-उस नक्षत्र वाले द्रव्य देश एवं देशवासियों का (हन्यात् चाथ विनाशयेत्) घात या नाश होता है।
भावार्थ-जिस-जिस नक्षत्र पर शनि अस्त हो या उदय हो तो उस-उस नक्षत्र वाले द्रव्य, देश एवं देश वासियों का घात होता है एवं नाश होता है।। ३१ ।।
शनैश्चरं चारमिदं च भूयो योवेत्तिविद्वान् निभृतो यथावत् ।
स पूजनीयो भुविलब्धकीर्त्ति: सदा महात्मेव हि दिव्य चक्षुः ॥३२॥ (यो) जो (विद्वान्) विद्वान् (यथावत्) यथावत् (निभृतो) अच्छी तरह से (शनैश्चरं) शनि के (चारमिदं) संचार को (भूयोवेत्ति) जानता है (स) वही (पूजनीयो) पूज्यनीय है (भूविलब्धकीर्तिः) वही कीर्ति को प्राप्त हुआ (सदामहात्मेवहि दिव्यचक्षुः) वही महात्मा दिव्य चक्षुधारी है।
भावार्थ-जो विद्वान् यथावत् अच्छी तरह से शनि के संचार जानता है वही पूज्यनीय है, उसीको कीर्तिकी प्राप्ति हुई है वही दिव्य महात्मा है, संसार में वहीं महात्मा उत्कृष्ट कहलाता है, जिसने महान् दिव्य ज्ञान को धारण किया
है।। ३२॥
विशेष वर्णन-अब आचार्य श्री इस अध्याय में ग्रहों का संचार कहते हैं, कौनसी राशि पर कौन से ग्रह का संचार है और उसका क्या फल होता है कौनसे देश पर या राजा पर या व्यक्ति पर क्या असर करेगा, इन सब बातों का इस अध्याय में वर्णन है।
जैसे राशियाँ बारह होती है, मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ।
ग्रह नौ होते हैं, शनि, रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, राहु, केतु।
अगर धनु राशि में शनि का संचार हो तो धन-धान्य की अच्छी उत्पत्ति, समयानुकूल वर्षा प्रजामें शान्ति का अनुभव, धर्म की वृद्धि, विद्या का प्रचार, कलाकारों