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षोडशोऽध्यायः
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कृष्णे शुष्यन्ति सरितो वासवश्च न वर्षति।
स्नेहवानत्र गृह्णाति रूक्षः शोषयते प्रजाः ।। २७॥
शनि के (कृष्णे) काले होने पर (सरितो शुष्यन्ति) तालाब सूख जाते हैं, (वासवश्च न वर्षति) वर्षा नहीं होती है और (स्नेहवानत्र गृह्णाति) स्निग्ध हो तो प्रजा में सहयोग (रूक्षः शोषयतेप्रजा:) और रूक्ष हो तो प्रजा में शोषण होता है।
भावार्थ-जब शनि काले वर्ण का हो तो सारे तालाब सूख जाते हैं, वर्षा नहीं होती है स्निग्ध हो तो प्रजा में प्रेम बढ़ता है, और रूक्ष हो तो प्रजा का शोषण होता है।। २७॥
सिंहलानां किरातानां मद्राणां मालवैः सह।
द्रविडानां च भोजानां कोंकणानां तथैव च ।। २८॥
और भी आगे (सिंहलानां किरातानां) सिंहल, किरात (मद्राणां मालवैःसह) मालव, मद्र (द्रविडानां च भोजानां) द्रविड और भोज (कोंकणानां तथैव च) तथा कोंकण।
भावार्थ-सिंहल, किरात, मालव, मद्र, द्रविड़ और भोज, कोंकण तथा और भी॥ २८॥
उत्कलानां, पुलिन्दानां पल्हवानां शकैः सह। यवनानां च पौराणां स्थावराणां तथैव च।।२९।। अङ्गानां च कुरूणां च दश्यानां च शनैश्चरः।
एषां विनाश कुरुते यदि युध्येत संयुगे॥३०॥ (उल्कलानां पुलिन्दानां) उल्कल, पुलिन्द (पल्हवानां शकै: सह) पल्हव और शक (यवनानां) यवन (च) और (पौराणां) पौराण, (तथैव च) और उसी प्रकार (अजनां) अंग (च कुरूणां) और कुरू (दश्यानां) दस्यु आदि देशों का (शनैश्चर: संयुगे युध्येत्) यदि शनि युगपत् वाधित होता है तो (एषां विनाशं कुरुते) इन सब देशों का विनाश कर देता है।
भावार्थ-यदि शनि बेधित हो रहा हो तो या युद्ध हो रहा हो तो समझो, उल्कल, पुलिन्द, पल्वह, शक, यवन, पौराण, अन, कुरू, दस्यु आदि देशों का विनाश करता है, इतने देशों में अनिष्ट होता है।। २९-३०॥
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