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षोडशोऽध्यायः
का सम्मान, देश में कला कौशल की उत्पत्ति प्रजा में सुख और शान्ति का अनुभव, प्रसन्नता बढ़ती है। प्रजाको सभी प्रकार के सुख प्राप्त होता है याने सभी तरफ सुख और शान्ति ही बढ़ती है।
शनि के मेष राशि पर होने से, धान्य नाश, तैलंग, द्रविड और बंग देश में विग्रह पाताल, नागलोक, दिशा-विदिशा में विद्रोह मनुष्यों में क्लेश, वैर, धनका नाश, अन्न की महंगी, पशुओं का नाश एवं प्रजा में भय और आतंक रहता है।
मकर के शनि में सोना-चाँदी, ताँबा, हाथी, घोड़ा, बैल, सूत, कपास आदि पदार्थों का भाव महंगा होता है, क्योंकि ऐसे शनि में वर्षा नहीं होने के कारण धान्योत्पत्ति नहीं होती, रोग के कारण प्रजा का नाश होता है, अग्नि का भय होता है इन सब कारणों से प्रजा में भय और अशान्ति होती है।
इस अध्याय में मुख्यतः शनि के संचार का वर्णन और बाकी ग्रहों का वर्णन भी किया है, जैसे शनि के उदय विचार, शनि के अस्त विचार नक्षत्रानुसार शनि फल का वर्णन किया है।
जैसे
'नक्षत्रानुसार शनि का एक उदाहरण लिखता हूँ ।
रोहिण नक्षत्र का शनि उत्तरप्रदेश और पंजाब के व्यक्तियों को कष्ट देता है, पूर्व और दक्षिण के निवासियों को सुख-शान्ति देता है, प्रजा में क्रान्ति लाता है देश में नई-नई मांगे उठती है, शिक्षा व व्यवसाय के क्षेत्र में उन्नति होती है आदि । इसी प्रकार अन्य समझे। आगे इन ग्रहों के संचार विषयक ज्योतिषाचार्य का अभिमत भी दे देता हूँ ।
विवेचन — शनि के मेषराशि पर होने से धान्यनाश, तैलंग, द्राविड़ और बंग देशमें विग्रह, पाताल, नागलोक, दिशा - विदिशा में विद्रोह, मनुष्यों में क्लेश, वैर, धनका नाश, अन्नकीं महँगी, पशुओं का नाश, जनता में भय एवं आतंक रहता है। मेषराशि का शनि आदि व्यादि उत्पन्न करता है । पूर्वीय प्रदेशों में वर्षा अधिक और पश्चिमके देशों में वर्षा कम होती है। उत्तर दिशा में फसल अच्छी होती है। दक्षिणके प्रदेशों में आपसी विद्रोह होता है । वृष राशिपर शनि के होने से कपास, लोहा, लवण, तिल, गुड़, महँगे होते हैं तथा हाथी, घोड़ा, सोना, चाँदी सस्ते रहते हैं । पृथ्वी मण्डल पर शान्ति का साम्राज्य छाया रहता है। मिथुन राशिके