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ग्रन्थ प्रथम संस्करण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ बन गया है।
घण्टाकर्ण मन्त्र कल्प:
ग्रन्थमाला समिति ने 16वें पुष्प के रूप में घण्टाकर्ण मन्त्र कल्पः ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर श्री दिगम्बर जैन चन्द्राप्रभु जिनमन्दिर अतिशय क्षेत्र तिजारा (अलवर) के प्रांगण में परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थुसागरजी के कर कमलों द्वारा दिनांक 30-1-91 को विमोचन करवाया है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में यन्त्र मन्त्र प्रकाशित किये गये हैं जिनके माध्यम से श्रद्धा सहित ग्रन्थ में वर्णित विधि से उपयोग करने पर अनेक प्रकार के रोग शोक आधि-व्याधि से भव्य जीव छुटकारा पा सकते हैं।
व्रत कथा कोष
ग्रन्थमाला समिति ने 17वें पुष्प के रूप में " व्रत कथा कोष" ग्रन्थ का प्रकाशन करवाकर श्री दिगम्बर जैन जतीजी भवन रोहतक (हरियाणा) के प्रांगण में मुनि दीक्षा समारोह के शुभावसर पर परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज के कर कमलों द्वारा दिनांक 22-7-91 को करवाया है।
इस ग्रन्थ में व्रतों की तिथियाँ निर्णय करने की विधि महत्वपूर्ण है । व्रतों की कथाएँ उपवासों की विधि अनेक फलादि का सुन्दर विवेचन है। लोग "भूखों मरने से क्या " लाभ कहकर, व्रतों की उपेक्षा कर देते हैं। गणधराचार्य कुन्धुसागरजी महाराज ने इस विशाल ग्रन्थ का संग्रह कर कथा साहित्य को तो प्रचलित किया ही है लेकिन साथ ही साथ वर्तमान अध्यात्मवाद के आभास में भटके भव्य जीवों को त्याग तपस्या की महान प्रेरणा प्रदान की है। व्रत अवास आत्मशुद्धि परिणाम विशुद्धि के सबल आधार समान है।
व्रत करने की विधि तथा व्रत कथा विषय के अनेक साहित्य उपलब्ध हैं। किसी में 25 किसी में 20 या अधिक से अधिक 100 कथाओं का संकलन मिलता है। लेकिन इस वृहदाकार ग्रन्थ में लगभग 375 से भी अधिक कथाओं का संकलन है। इस प्रकार व्रत सम्बन्धी सर्वांग सुन्दर, वृहद् ग्रन्थ का आज तक प्रकाशन नहीं हुआ है।
गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय पुस्तक-
परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्धुसागरजी महाराज ने अपने विशाल संघ सहित