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भद्रबाहु संहिता
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यदा प्रदक्षिणं गच्छेत् पञ्चत्वं कुरुमादिशेत्।
वामतो गच्छमानस्तु ब्राह्मणानां भयङ्करः ॥१३७॥ (यदा) जब शुक्र अभिजित नक्षत्र का (प्रदक्षिणं गच्छेत) दक्षिणरूप होकर गमन करे तो (पञ्चत्वंकुरुमादिशेत्) कौरवों को मृत्यु प्राप्त करता है (वामतो गच्छमानस्तु) वाम भाग में गमन करे तो (ब्राह्मणानां भयङ्करः) ब्राह्मणों के लिये भयंकर है।
भावार्थ-जब शुक्र अभिजित नक्षत्र में दक्षिण का होकर गमन करे तो कौरवों को मृत्यु प्राप्त करता है और वाम भाग में हो तो ब्राह्मणों के लिये महान् भयंकर होता है।। १३७॥
सौरसेनांश्च मत्स्यांश्च श्रवणस्थः प्रपीडयेत्। वङ्गाङ्गमगधान्
हन्यादारोहणप्रभर्दने॥१३८॥ यदि (श्रवणस्थः) श्रवण नक्षत्रमें शुक्र गमन करता हुआ हो तो (सौरसेनांश्च) सौरसेना (मत्स्यांश्च) मत्स्य देशवासी को (प्रपीडयेत्) को पीड़ा देता है (रोहण) यदि शुक्र रोहण करे (प्रमर्दने) प्रमर्दन करे तो (वा) बंग, अंगदेश को व (मगधान्) मगधवासियों को (हन्याद्) मारता है।
भावार्थ—यदि श्रवण नक्षत्र को शुक्र आरोहण करे तो सौरसेना, मत्स्यवासीयों को पीडा देता है, वहीं शुक्र प्रमर्दन करता हुआ गमन करे तो बंग, अंग, मगधवासियों को मारता है॥१३८ ।।
दक्षिणः श्रवणं गच्छेद् द्रोणमेघं निवेदयेत् ।
वामगस्तूपघाताय नृणां च प्राणिनां तथा।।१३९॥ यदि (दक्षिण:) दक्षिण से (श्रवणं) श्रवण नक्षत्र को शुक्र (गच्छेद्) गमन करे तो (द्रोणमेघ) एक द्रोण प्रमाण वर्षा (निवेदयेत्) होगी, ऐसा निवेदन करे, (तथा) तथा (वामगस्तूपघाताय नृणा च प्राणिनां) और बौयी और से गमन करे तो मनुष्यों के लिये और प्राणियों के लिये घात का कारण है।
भावार्थ-यदि शुक्र दक्षिण से श्रवण नक्षत्र को गमन करे तो एक द्रोण