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पञ्चदशोऽध्यायः
प्रमाण वर्षा होगी ऐसा निवेदन करे, तथा वाम भाग से उसी प्रकार गमन करे तो मनुष्यों को व प्राणियों को घात करेगा॥१३९ ॥
धनिष्ठास्थो धनं हन्ति समृद्धांश्च कुटुम्बिनः।
पाञ्चाला: सूरसेनांश्च मत्स्यानारोहमर्दने॥१४० ।। यदि शुक्र (धनिष्ठास्थो) धनिष्ठा नक्षत्रों में गमन करे तो (समृद्धाश्च) समृद्धशाली (कुटुम्बिनः) कुटुम्बो का (धनं हन्ति) धन का हरण करेगा वही धनिष्ठा नक्षत्र में शुक्र (आरोहमर्दने) आरोहण व मर्दन करे तो (पाञ्चाला:) पाञ्चाल देश (सूरसेनाश्च) सूरसेना देश (मत्स्यान्) मत्स्य देश का नाश करता है।
भावार्थ-यदि धनिष्ठा नक्षत्र को शुक्र गमन करे तो समृद्धशाली धनिक परिवारों का नाश करेगा और उसी नक्षत्र को आरोहण व मर्दन करे तो पाञ्चाल सूरसेन और मत्स्य देशों का विनाश करेगा ॥ १४० ॥
दक्षिणो धनिनो हन्ति वामगो व्याधिकृद् भवेत्।
मध्यगः सुप्रसन्नश्च सम्पशस्यति भार्गवः ।। १४१॥
यदि शुक्र (दक्षिणो धनिनो हन्ति) उसी नक्षत्र को दक्षिण की ओर गमन करे तो धनवानों का नाश करता है। (वामगो व्याधि कृद् भवेत्) वामभाग में गमन करे तो व्याधि उत्पन्न करता है (मध्यगः) मध्यमें गमन करे तो (सुप्रसन्नश्चसम्प्रशस्यति) प्रसन्नरूप और प्रशस्त होता है।
भावार्थ-यदि शुक्र उपर्युक्त नक्षत्रमें दक्षिण और गमन करे तो धनवानों का नाश करता है, वामभाग में जाय तो व्याधियाँ उत्पन्न होगी, मध्यमें हो तो सुखरूप उत्तम रहता है।। १४१॥
शलाकिनः शिलाकृतान् वारुणस्थः प्रहिंसति।
कालकूटान् कूनाटांश्च हन्यादारोहमर्दने ।। १४२ ॥ यदि शुक्र (वारुणस्थः) शतभिखा नक्षत्र को गमन करे तो (शलाकिन:) शालकी (शिला कृतान्) शिलाकृतों का (प्रहिंसति) नाश करता है (आरोहमर्दने) उसी प्रकार आरोहण व मर्दन करे तो (कालकुटान्) काल कूट (कूनाटांश्च) कुनाटों को (हन्याद्) नाश करता है।