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पञ्चदशोऽध्यायः
भावार्थ-यदि शुक्र पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में गमन करे तो और आरोहण करता हुआ मर्दन करे तो भूमिचर और जलचर जीवों को पीड़ा होती है किन्तु वर्षा भी शान्तिकर होती है॥१३३ ।।
दक्षिणः स्थविरान् हन्ति वामगो भयमावहेत्।
सुवर्णो मध्यमः स्निग्धो भार्गव: सुखमावहेत्॥१३४॥ (दक्षिण: स्थविरान् हन्ति) यदि शुक्र उपर्युक्त रीति से दक्षिण में हो तो (स्थविरों) का घात करती है (वामगो भयमावहेत) बायीं ओर का हो तो भय उत्पन्न करता है (सुवर्णो) सुवर्ण (मध्यमः) मध्यम (स्निग्धो) स्निग्ध शुक्र हो तो (सुखमावहेत) सुख उत्पन्न करता है।
भावार्थ-यदि शुक्र उपर्युक्त रीति से दक्षिण का हो तो स्थावरों का घात करता है, यदि शुक्र सवर्ण वाला हो मध्यमें गमन करे, स्निग्ध हो तो सुख को उत्पन्न करता है ।। १३४॥
यधुत्तरासु तिष्ठेच्च पाञ्चालान् मालवत्रयान्।
पीडयेन्मईयेद्रोहाद् विश्वासाढ़ेद कृत्तथा ।। १३५॥ (यद्युत्तरासु तिष्ठेच्च) यदि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शुक्र ठहरे तो (पाञ्चालान्) पाञ्चाल (मालवत्रयान्) मालवत्रय, (पीडयेनन्तमईयेद्) पीडा देता है, मर्दन करता है (द्रोहाद्) द्वेष से (विश्वाससानेहद कृतथा) विश्वास देकर भेद करता है।
भावार्थ-यदि उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शुक्र ठहरता है, तो पाञ्चाल मालवत्रय को पीड़ा देता है मर्दन करता है द्रोह करता है विश्वास देकर भेद करेगा॥ १३५ ।।
अभिजित्स्थः कुरून् हन्ति कौरल्यान् क्षत्रियांस्तथा।
पशवः साधवश्चापि पीडयते रोह मर्दने ।। १३६ ।। (अभिजित्स्थ:) अभिजित नक्षत्र में शुक्र (रोह मर्दने) आरोहण व मर्दन करे तो (कौरव्यान) कौरवों को (तथा) तथा (क्षत्रियां:) क्षत्रियों को (पशवः) पशुओं को (साधवश्चापि) साधुओं को (पीड्यते) पीड़ा देता है (हन्ति) मारता है।
भावार्थ यदि अभिजित नक्षत्र में शुक्र आरोहण करे मर्दन करे तो कौरवों को क्षत्रियों को पशुवों को, साधुओं को पीडा देता है मारता है॥१३६ ।।