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के शुभावसर पर दिनांक 11-12-88 को परमपूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के कर-कमलों द्वारा हजारों की संख्या में उपस्थित जन-समुदाय के बीच करवाया।
श्री गोम्मट प्रश्नोत्तर चिंतामणि ग्रन्थ जैन रामायण सरिका (गागर में सागर) के समान 1100 पृष्ठों का वृहद् ग्रन्थ है। 38 ध्यान के रंगीन चित्र इसमें प्रकाशित किये गये हैं। इस ग्रन्थ के संकलनकर्ता परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज ही हैं। ग्रन्थ के सम्बन्ध में गणधराचार्य महाराज के विचार निम्न प्रकार है
"ग्रन्थ में करुणानुयोग, द्रव्यानुयोग आदि सभी प्रकार की चर्चायें संग्रहित की गई हैं और आधार लिया गया है जिनागम का मैं समझता हूँ, कि स्वाध्याय प्रेमियों को इस एक ही ग्रन्थ के स्वाध्याय करने से जिनागम का बहुत कुछ ज्ञान हो सकता है, इस ग्रन्थ में गुणस्थानानुसार श्रावक धर्म, मुनि धर्म, आत्म ध्यान पींडस्थ रूपातीत आदि ध्यान और उनके चित्रों सहित वर्णन किया गया है, और अनेक सामग्री संकलित की गई है। यह ग्रन्थ अपने आप में एक नया ही संग्रहित हुआ है, इस ग्रन्थ में सभी ग्रन्थों से लेकर 2,178 श्लोकों का संग्रह है।"
इस ग्रन्थ में पूर्वाचार्यकृत गोम्मट्टसार, जीवकाण्ड, त्रिलोकसार, मूलाचार, ज्ञानार्णव, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, रत्नकरंड श्रावकाचार, तत्त्वार्थ सूत्र, राजवार्तिक आचारसार, अष्टपाहुड, हरिवंश पुराण, आदि पुराण, वसुनंदी श्रावकाचार, परमात्म प्रकाश, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय, समयसार कलश, धवलादि, उमास्वामी का श्रावकाचार, जैन सिद्धान्त प्र. दशभक्त्यादि संग्रह, चर्चाशतक, चर्चासमाधान, स्याद्वाद चक्र, चर्चासागर, सिद्धान्तसागर प्रदीप, मोक्ष मार्ग प्रकाशक, त्रिकालवर्ती महापुरुष आदि बड़े-बड़े ग्रन्थों का आधार लेकर संग्रह किया गया है। धर्म ज्ञान एवं विज्ञान
ग्रन्थमाला समिति ने चौदहवें पुष्प के रूप में "धर्म ज्ञान एवं विज्ञान" पुस्तक का भी प्रकाशन करवाकर आरा (बिहार) में आयोजित पंचकल्याणक महोत्सव में जन्म कल्याणक के शुभावसर पर परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थु सागरजी महाराज के कर-कमलों द्वारा दिनांक 11-12-88 को करवाया है। इस पुस्तक में जैन धर्म के तत्त्वों का सरल भाषा में उल्लेख किया गया है। पुस्तक के लेखक गणधराचार्य महाराज के परम शिष्य ऐलाचार्य उपाध्याय सिद्धान्त चक्रवर्ति परम पूज्य श्री 108 कनक नन्दि जी महाराज हैं। पुस्तक सभी के लिए पठनीय है।