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पञ्चदशोऽध्यायः
भावार्थ- उत्तराषाढ़ा, श्रवण नक्षत्र में यदि शुक्र मध्यम रूप से गमन करे तो कुमारों को पीड़ा और अनार्य व अन्त्यजों को पीड़ा होती है।। ८९॥
प्रजापत्यमाषाढां च यदा मध्येन गच्छति।
तदा व्याधित: चौराश्च पीड्यन्ते वणिजस्तथा ॥१०॥ (यदा) जब (प्रजापत्यमाषाढां च) रोहिणी व उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में यदि शुक्र (मध्येन गच्छतिः) मध्य से जाता है तो (तदा) तब (चौराश्च वाणिजस्तथा) चोरों को और व्यापारियों को (व्याधित: पीडयन्ते) व्याधि से पीड़ा होगी।
भावार्थ- यदि रोहिणी और उत्तराषाढ़ा नक्षत्रमें शुक्र मध्यम गति से गमन करे तो चोरों को और व्यापारियों को व्याधि जनित पीड़ा होगी॥९० ॥
चित्रामेव विशाखां च याम्यमाद्री च रेवतीम्।
मैत्रे भद्रपदां चैव याति वर्षति भार्गवः ॥११॥ (चित्रामेव विशाखां च) चित्रा, विशाखा और (याम्यमानॊ च रेवतीम्) भरणी, आर्द्रा, रेवती (मैत्रे भद्रपदां चैव) अनुराधा, पूर्वभाद्रपद नक्षत्रों में (यातिवर्षति भार्गव:) शुक्र गमन करे तो वर्षा होती है।
___ भावार्थ-चित्रा, विशाखा, भरणी, आर्द्रा, रेवती, अनुराधा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रों में यदि शुक्र गमन करे तो समझो वर्षा अच्छी होती है।९१॥
फल्गुन्यथ भरण्यां च चित्रवर्णस्तु भार्गवः।
तदा तु तिष्ठेद् गच्छेद् तु वक्रं भाद्रपदं जलम् ।। ९२॥ (चित्रवर्णस्तु भार्गव:) विचित्र वर्ण का शुक्र (फल्गुन्यथ भरण्यां च) पूर्वा फाल्गुनी और भरणी नक्षत्र में (तिष्ठेद् वा गच्छेद्) ठहरे या गमन करे (तु) तो (तदा) तब (वक्र भाद्रपदं जलम्) भाद्रपद मास में जल की वर्षा होगी।
भावार्थ-यदि पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रमें भरणी में शुक्र विचित्र वर्ण का होकर गमन करे या ठहरे तो समझो भाद्रपद में वर्षा होती है।। ९२॥
प्रत्यूषे पूर्वतः शुक्रः पृष्ठतश्च बृहस्पतिः। यदाऽन्योऽन्यं न पश्येत् तदा चक्रं परिवर्तते ॥ ९३ ।।