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भद्रबाहु संहिता
विद्यात्) उत्तरदिशा में शुक्र गमन करे तो (सुभिक्षं क्षेम मेव च ) सुभिक्ष और क्षेम कुशल होता है।
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भावार्थ — इस प्रकार के नक्षत्रों के मध्यमें होकर शुक्र गमन करे तो समझो मध्यम फल होता है उत्तर दिशा का शुक्र सुभिक्ष क्षेम करता है ।। ८६ । मघायां च विशाखायां वर्षासु मध्यमस्थितः । तदा सम्पद्यते सस्यं समर्थ च सुखं शिवम् ॥ ८७ ॥
( वर्षासु ) वर्षा कालमें जब शुक्र ( मघायां च ) मघा और (विशाखायां ) विशाखा नक्षत्र में (मध्यम स्थितः ) मध्यम होकर गमन करे तो ( तदा) तब ( सस्यं सम्पद्यते ) धान्यो की उत्पति होती है (सम व सुखं शिवम् ) वस्तुओं के भाव सस्ते होते है, सुख की प्राप्ति होती है, आनन्द प्राप्त होता है।
भावार्थ- वर्षा काल में जब शुक्र मघा और विशाखा नक्षत्रों में मध्यम जगति से गमन करता है तो समझो छान्यों की उत्पत्ति अच्छी होती हैं वस्तुओं के भाव सस्ते होते हैं आनन्द और सुख की प्राप्ति होती है ॥ ८७ ॥ च याति मध्येन भार्गवः ।
पुनर्वसुमाषाढां
तदा सुवृष्टिश्च विन्द्यात् व्याधिश्च समुदीर्यते ॥ ८८ ॥
( पुनर्वसुमाषाढां च ) पुनर्वसु और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में यदि ( भार्गवः) शुक्र ( मध्येन याति ) मध्यम गति से गमन करे तो ( तदा) तब ( सुवृष्टिश्च व्याधिश्च ) सुवृष्टि और व्याधि (समुदीर्यते विन्द्यात्) करता है ऐसा जानो ।
भावार्थ- पुनर्वसु पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रों में यदि शुक्र मध्यम गति से गमन करे तो व्याधियाँ और वृष्टि दोनों ही सर्वत्र होती है ॥ ८८ ॥
आषाढां श्रवणं चैव यदि मध्येन कुमाराँश्चैवपीताऽनार्याञ्चन्त
गच्छति । वासिनः ।। ८९ ।।
( आषाढ़ां श्रवणं चैव ) उत्तराषाढ़ा और श्रवण नक्षत्र में (यदि ) यदि शुक्र ( मध्येन गच्छति ) मध्यम गति से गमन करे तो (कुमारोंश्चैवपीड्येता) कुमारों को पीड़ा होती है (अनार्याञ्चन्त वासिन: ) अनार्य और अन्त्यजों की पीड़ा होती है।