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पञ्चदशोऽध्याय:
(हीने चारे) हीनाचार वाला शुक्र (जनपदान्) जनपद का विनाश कराता है (अतिरिक्ते नृपं वधेत्) अधिक गति वाला शुक्र राजा का नाश करता है (समेतु समतां विन्द्यात्) सम शुक्र हो तो समता होता है (विषमेविषमं वदेत्) विषम शुक्र हो तो विषमता करता है ऐसा कहो।
भावार्थ-यदि शुक्र हीनाचार रूप गमन करे तो जनपद का विनाश करता है, अधिक गति वाला शुक्र राजा का नाश करता है, समगति वाला शुक्र समता पैदा करता है और विषमगति वाला शुक्र विमता पैदा करता है।। ८३ ।।
कृत्तिकां रोहिणी चित्रां मैत्रमित्रं तथैव च। वर्षासु दक्षिणाद्यासु यदा चरति भार्गवः ।। ८४॥ व्याधिश्चेतिश्चदुर्वृष्टिस्तदा धान्यं विनाशयेत्।
महायं जनमारिश्च जायते नात्र संशयः ॥८५॥ (कृत्तिका) कृत्तिका (रोहिणी) रोहिणी (चित्रां) चित्रा (तथैव च) उसी प्रकार और (मैत्रमित्रं) अनुराधा, विशाखा इन नक्षत्रोंमें (वर्षामुदक्षिणाद्यासु) व वर्षा काल में दक्षिणदिशा में (यदा चरति भार्गव:) यदि शुक्र गमन करता है तो (व्याधिश्चेतिश्चदुर्वृष्टिः) व्याधियाँ और दुर्वृष्टि होती है (तदा धान्यं विनाशयेत्) तदा धान्यों का भी नाश होता है (महाघु जनमारिश्च) महँगाई होगी, जनमारि फैलेगी, (जायते नात्र संशयः) इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ- कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा, अनुराधा, विशाखा इन नक्षत्रों के व वर्षा काल में दक्षिण दिशा में यदि शुक्रगमन करता है तो व्याधियाँ होगी दुर्वष्टियाँ होगी, धान्यों का नाश होगा, महँगाई फैलेगी, मारीरोग फैलेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।। ८४-८५॥
एतेषामेव मध्येन मध्यम फलमादिशेत्।
उत्तरेणोत्तरं विद्यात् सुभिक्षं क्षेममेव च॥८६॥ (एतेषामेव मध्येन) इस प्रकार के नक्षत्रों के बीच शुक्र मध्यमें होकर गमन करे तो (मध्यमं फलमादिशेत्) मध्यम प्रकार का फल होता है ऐसा कहे (उत्तरेणोत्तर