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चतुर्दशोऽध्यायः
पैर, जंघा, घुटने, गुदा और कमर पर छिपकली के गिरने से बुरा फल होता है, अन्यत्र प्राय: शुभ फल होता है। पुरुषोंके बायें अंगका जो फल बतलाया गया है, उसे स्त्रियोंके दाहिने भागका तथा पुरुषोंके दाहिने अंगके फलादेशको स्त्रियोंके बायेंभागका फल जानना चाहिए। छिपकलीके गिरनेसे और गिरगिटके ऊपर चढ़नेसे बराबर ही फल होता है। संक्षेप में बतलाया गया है।
यदि पतित च पल्ली दक्षिणाने नराणां; स्वजनजनविरोधो वामभागे च लाभम्। उदरशिरसि कण्ठे पृष्ठभागे च मृत्यु; करचरणहृदिस्थे सर्वसौख्यं मनुष्यः॥
अर्थात् दाहिने अंगपर पल्ली पतन हो तो आत्मीय लोगोंमें विरोध हो और वाम अंग पर पल्लीके गिरनेसे लाभ होता है। पेट, सिर, कण्ठ, पीठपर पल्लीके गिरनेसे मृत्यु तथा हाथ, पाँव और छातीपर गिरने से सब सुख प्राप्त होते हैं।
गणित द्वारा पल्ली पतन के प्रश्न का उत्तर 'तिथिप्रहरपुक्ता तारकावारीमानता, नाथस्तु हरेद् भागं शेष ज्ञेयं फलाफलम्। पातं नाशं तथा लाभंकल्याणं जयमङ्गले। उत्साहहानी मृत्युश्च छिक्का पल्लीच जाम्बुक।।'
अर्थात--जिस दिन जिस प्रहरमें पल्ली पतन हुआ हो-छिपकली गिरी हो उस दिन की तिथि शुक्ल प्रतिपदासे गिनकर लेना, प्रातःकालसे प्रहर और अश्विनीसे पतनके नक्षत्र तक लेना अर्थात् तिथि संख्या, नक्षत्र संख्या और प्रहर संख्याको योग कर देना, उस योग में नौ का भाग देनेपर एक शेषमें घात, दो में नाश, तीनमें लाभ, चारमें कल्याण पाँचमें जय, छ:में मंगल, सातवेंमें उत्साह, आठमें हानि और नौ शेषमें मृत्यु फल कहना चाहिए। उदाहरण—रामलालके ऊपर चैत्र कृष्ण द्वादशीको अनुराधा नक्षत्रमें दिनमें १० बजे छिपकली गिरी है। इसका गणित द्वारा विचार करना है, अत: तिथि संख्या १७ (फाल्गुन शुक्ला १ से चैत्र कृष्णा द्वादशी तक) नक्षत्र संख्या १७ (अश्विनीसे अनुराधा तक), प्रहर संख्या २ (प्रातःकाल सूर्योदय से तीन-तीन घण्टेका एक-एक प्रहर लेना चाहिए) अत: २७ + १० + २ = ४६ में ९ का भाग देने पर ५ ल. शेष १ यहाँ उदाहरणमें एक शेष रहा है, अत: इसका फल घात होता है। किसी दुर्घटनाका शिकार यह व्यक्ति होगा।