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भद्रबाहु संहिता !
पल्ली-पतनका फलादेश इस प्रकारका भी मिलता है तो प्रात:कालसे लेकर मध्याह्न काल तक पल्ली पतन होनेसे विशेष अनिष्ट, मध्याह्नसे सायंकाल तक पल्लीपतन होनेसे साधारण अनिष्ट और सन्ध्याकालके उपरान्त पल्ली-पतन होनेसे फलाभाव होता है। किसी-किसीका यह भी मत है कि तीनों कालोंकी सन्ध्याओंमें पल्लीपतन होने से अधिक अनिष्ट होता है। इसका फल किसी-न-किसी प्रकारकी अशुभ घटनाका घटित होना है। दिनमें सोमवारको पल्ली-पतन होने से साधारण फल, मंगलवारको पल्लीपतनका विशेष फल, बुधवारको पल्लीपतन होनेसे शुभ फलकी वृद्धि तथा अशुभ फलकी हानि, गुरुवारको पल्लीपतन होनेससे सामान्य फलादेश, शनिवारको पल्लीपतन होनेसे अशुभ फलकी वृद्धि और शुभ फलकी हानि एवं रविवारको पल्लीपतन होनेसे शुभ फल भी अशुभ फलके रूपमें परिणत हो जाता है। पल्लीपतनका अनिष्ट फल तभी विशेष होता है, जब शनि या रविवारको भरण या आश्लेषा नक्षत्रमें चतुर्थी या नवमी तिथिको सन्ध्याकालमें पल्ली-छिपकली गिरती है। इसका फल मृत्युकी सूचना या किसी आत्मीयकी मृत्यु सूचना अथवा किसी मुकद्दमेकी पराजय की सूचना समझनी चाहिए।
इति श्री पंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का उत्पात व उसके फलों का वर्णन करने वाला चौदहवाँ अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाली क्षेमोदर टीका समाप्तः।
(इति चर्तुदशोऽध्यायः समाप्तः)
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