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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ-जो वृक्ष छोटे है वन के अन्त में उत्पन्न होने वाले है शीघ्र ही उत्पन्न होने के आकार के हैं ऐसी स्थिति के वृक्ष प्रतिशत्रु के लिये घातक हैं।॥ २९॥
ये विदिक्षु विमिश्राश्च विकर्मस्था विजातिषु।
प्रतिपुद्गलाश्च येषां तेषामुत्पातजं फलम्।।३०॥ (ये) जो वृक्ष (विदिक्षु) विदिशामें हो (विमिश्राश्च) मिश्रित हो (विकर्मस्था) विपरीत कर्मवाले हो (विजातिषु) विजातिरूप हो (येषां) इस प्रकार वृक्ष के निमित्त (प्रति पुद्गलाश्च) उत्पात के कारण होते है (तेषामुत्पातजं फलम्) वहाँ पर समाज के लिये कष्टदायी है।
भावार्थ—जो वृक्ष विदिशामें मिश्ररूप विपरीत कर्म के दिखने वाले विजातीय हो तो समझो जनपद के लिये घातक हैं॥३०॥
श्वेतो रसो द्विजान् हन्ति रक्त: क्षत्रनृपान् वदेत्।
पीतो वैश्य विनाशाय कृष्णः शूद्रनिषूदये॥३१॥ यदि वृक्षों से (श्वेतरसो द्विजान् हन्ति) सफेद रस निकले तो ब्राह्मणों का घात होगा, (रक्तः क्षत्रनृपान् वदेत्) लाल निकले तो क्षत्रिय राजाओं का नाश, (पीता वैश्य विनाशाय) पीला निकले तो वैश्यों का नाश (कृष्ण: शूद्रनिषूदये) काला निकले तो शूद्रों का नाश होता है।।
भावार्थ-यदि वृक्षों से सफेद रस निकले तो ब्राह्मणों का नाश होगा, लाल निकले तो राजा व क्षत्रियों का नाश होगा, पीला निकले तो वेश्यों का नाश काला निकले तो शूद्रों का नाश होगा ऐसा कहे।। ३१ ।। ।
परचक्रं नृपभयं क्षुधाव्याधि धनक्षयम्।
एवं लक्षणसंयुक्ताः स्रावा: कुर्युर्महद्भयम्॥३२॥ इस प्रकार (एवं लक्षण संयुक्ता नावा:) के लक्षणों से सहित मिश्रित रूप से रस वृक्षों से गिरे तो (परचक्रं नृपभयं) पर चक्र के राजा का भय हो (क्षुधा व्याधि धनक्षयम्) लोग भूखों मरे, व्याधियाँ उत्पन्न हो धन का क्षय हो (महद्भयम् कुर्युः) और महान् भय उत्पन्न हो।
भावार्थ-यदि वृक्षों से मिश्रित वर्ण के रस गिरे तो समझो पर चक्र के