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चतुर्दशोऽध्यायः
भावार्थ-जहाँ पर बादल शराब, रक्त, हड्डी और चर्बी, अंगारों की चिनगारियाँ बरसायें तो वहाँ पर महान भय उपस्थित होगा॥१३॥
सरीसृपा जलचराः पक्षिणो द्विपदास्तथा।
वर्षमाणा जलधरात् तदाख्यान्ति महाभयम्॥१४॥
जहाँ पर (जलधरात्) मेघों से (सरीसृपा) सरीसर्प (जलचरा:) जलचर (तथा) तथा (द्विपदा:) दो पाँव वाले जीव (वर्षमाणा) बरसे तो (तदा) तब (ख्यान्तिमहाभयम्) महाभय होगा ऐसा कहा है।
भावार्थ-जहाँ पर बादलों से सरीसर्प, मछली, मेढ़क, पक्षी आदि बरसे तो समझो वहाँ पर महान् भय होगा ऐसा जानो॥१४ ।।
विरानो यदा चाग्निरीक्ष्यते सततं पुरे।
स राजा नश्यते देशाच्छपमासात् परतस्तदा॥१५॥ (यदा राजा) जब राजा (निरिन्धनो चाग्नि) ईधन न होते हुए भी अग्नि को (पुरे सततं) नगर में सतत (रीक्ष्यते) देखता है। (स) वह (च्छण्मासात् परतस्तदा नश्यते) छह महीने के अन्दर ही नष्ट हो जायगा।
भावार्थ--जब राजा निरन्तर अग्नि के अभाव में भी नगर को जलता हुआ देखे तो समझो वो राजा छह महीनेके भीतर ही नष्ट हो जायगा।।१५॥
दीप्यन्ते यत्र शस्त्राणि वस्त्राण्यश्वा नरा गजाः।
वर्षे च नियते राजा देशस्य च महद्भयम्॥१६।। (यत्र) जहाँ पर (शस्त्राणि) शस्त्र, (वस्त्राण्यश्वा नरा गजा:) वस्त्र, घोड़े, मनुष्य, हाथी आदि (दीप्यन्ते) जलते हुए दिखे तो (वर्षे च म्रियते राजा) एक वर्ष में ही राजा का मरण होगा, (देशस्य च महद्भयम्) और देश के अन्दर महान भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-जहाँ पर शस्त्र, वस्त्र, घोड़े, हाथी, मनुष्य जलते हुए दिखाई दे तो समझो वहाँ पर एक वर्ष में राजा का भरण और उस देश में महान् भय उपस्थित होगा ।। १६॥