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त्रयोदशोऽध्यायः
वृद्धि बायें कान के पास छींक हो तो जय, बायें कानके पृष्ठ भागकी ओर छींक हो तो भोगोंकी प्राप्ति, बायें नेत्रके आगे छींक होतो धनलाभ होता है। प्रयाण कालमें सम्मुखकी छींक अत्यन्त अशुभ खाकर है और दाहिनी छींक धन नाश करनेवाली है। अपनी छींक अत्यन्त अशुभकारक होती है। ऊँच स्थानकी छींक मृत्यमय है, पीठ पीछेकी छींक भी शुभ होती है। छींक का विचार डाकने निम्न प्रकार किया
दक्षिन छींक धन लै दीजै, नैरित कोन सिंहासन दीजै॥ पच्छिम छौंकै मिठ भोजना, गेलो पलटै वायव कोना॥ उत्तर छींकै मान समान, सर्व सिद्ध लै कोन ईशान ।। पुरब छिंका मत्यु हंकार. अग्निकोण में दुःख के भार ।। सबके छिक्का कहिगेल 'डाक' अपने छिक्का नहिं कस काज॥
आकाशक छिक्के जे नर जाय, पलटि अन्न मन्दिर नहिं खाय॥
अर्थात् दक्षिण दिशासे होनेवाली छींक धन हानि करती है, नैर्ऋत्यकोणकी छींक सिहासन दिलाती है, पश्चिम दिशाकी छींक मीठा भोजन और वायव्य कोणकी छींक द्वारा गया हुआ व्यक्ति सकुशल वापस लौट आता है। उत्तरकी छींक मान-सम्मान दिलाती है, ईशानकोण की छींक समस्त मनोरथोंकी सिद्धि करती है। पूर्वकी छींक मृत्यु और अग्निकोणकी दुःख देती है। यह अन्य लोगोंकी छींक फल है। अपनी छींक तो सभी कार्योंको नष्ट करनेवाली होती है। अत: अपनी छीकका सदा त्याग करना चाहिए। ऊँच स्थान की छींकमें जो व्यक्ति यात्राके लिए जाता है, वह पुनः वापस नहीं लौटता है। नीचे स्थान की छींक विजय देती है।
बसन्तराज शकुनमें दशों दिशाओंकी अपेक्षा छींकके दस भेद बतलाये हैं। पूर्व दिशामें छींक होने से मृत्यु, अग्निकोणमें शोक, दक्षिणमें हानि, नैर्ऋत्यमें प्रियसंगम, पश्चिममें मिष्ट आहार, वायव्यमें श्रीसम्पदा, उत्तरमें कलह, ईशानमें धनागम, ऊपरकी छींकमें संहार और नीचेकी छींकमें सम्पत्तिकी प्राप्ति होती है। नीचे आठों दिशाओंमें प्रहर-प्रहरके अनुसार छींकका शुभाशुभत्व दिखलाया जाता है।