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भद्रबाहु संहिता
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मुँहमें लेकर श्वान सामने आवे तो यात्रामें रोग, कष्ट, मरण, धन-हानि आदि फल प्राप्त होते हैं। काष्ठ, पाषाणको कुत्ता मुखमें लेकर यात्रा करनेवालेके सामने आवे; पूँछ, कान और शरीरकी यात्रा करनेवालेके सामने हिलावे तो यात्रामें धन हरण, कष्ट एवं रोग आदि होते हैं। यदि ना करनेवाला गुप्तादो गर, वृक्षकी लकड़ी, अग्नि, भस्म, केश, हड्डी, काष्ठ, सींग, श्मशान, भूसा, अंगार, शूल, पाषाण, विष्ठा, चमड़ा आदि पर मूत्र करते हुए देखे तो यात्रामें नाना प्रकारके कष्ट होते
शृगाल विचार-जिस दिशामें यात्राकी जा रही हो, उसी दिशामें शृगाल या शृगालीका शब्द सुनाई पड़े तो यात्रामें सफलता प्राप्त होती है। यदि पूर्व दिशाकी यात्रा करनेवाले व्यक्तिके समक्ष शृगाल या शृगाली आजाय और वह शब्द भी कर रही हो तो यात्रा करनेवालेको महान् संकटकी सूचना देती है। यदि सूर्य सम्मुख देखती हुई शृगाली बाईं ओर बोले तो भय, दाहिनी ओर बोले तो अर्थनाश और पीठ पीछे बोले तो कार्यहानि फल होता है। दक्षिण दिशाकी यात्रा करनेवाले व्यक्तिके दाहिनी ओर शृगाली शब्द करे तो यात्रामें सफलताकी सूचना देती है। इसी दिशाके यात्रीके आगे सूर्यकी ओर मुँहकर शृगाली बोले तो मृत्युकी प्राप्ति होती है। पश्चिम दिशाको गमन करनेवालेके सम्मुख शृगाली बोले तो किञ्चित् हानि और सूर्यकी
ओर मुँह करके बोले तो अत्यन्त संकटकी सूचना देती है। यदि पश्चिम दिशाके यात्रीके पीठ पीछे शृगाली शब्द करती हुई चले तो अर्थनाश, बाईं ओर शब्द करे तो अर्थागम होता है। उत्तर दिशाको गमन करनेवाले व्यक्तिके पीठ पीछे शृगाली सूर्यकी ओर मुँहकर बोले तो यात्रामें अर्थहानि और मरण होता है। यदि यात्राकालमें शृगाली दाहिनी ओरसे निकलकर बाईं ओर चली जाय और वहीं पर शब्द करे तो यात्रामें सफलताकी सूचना समझनी चाहिए। शृगालीके शब्दकी कर्कशता और मधुरताके अनुसार फलमें ही अनाधिकता हो जाती है।
यात्रामें छींक विचार छौंक होनेपर सभी प्रकारके कार्योंको बन्दकर देना चाहिए। गमन कालमें छौंक होनेसे प्राणों की हानि होती है। सामने छींक होनेपर कार्यका नाश, दाहिने नेत्रके पास छींक हो तो कार्यका निषेध, दाहिने कानके पास छींक हो तो धन का क्षय, दक्षिण कान के पृष्ठ भाग में छींक हो तो शत्रुओं की