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त्रयोदशोऽध्यायः
ध्वजा, ऊँचे महल, धान्य की राशि अनके ढेर एवं उन्नत भूमि पर बैठा हुआ काक मुँहमें सूखी घास लेकर चबा रहा हो तो निश्चय यात्रा में अर्थ लाभ होता है। इस प्रकारकी यात्रामें सभी प्रकारके सुख साधन प्रस्तुत रहते हैं। यह यात्रा अत्यन्त सुखकर मानी जाती है। आगे-पीछे काक गोबरके ढेर पर बैठा हो या दूधवालेबड़, पीपल आदि पर स्थित होकर बीट कर रहा हो अथवा मुँहमें अन्न, फल, मूल, पुष्प आदि हों तो अनायास ही यात्राकी सिद्धि होती है। यदि कोई स्त्री जलका भरा हुआ कलश लेकर आवे और उस पर काक स्थित होकर शब्द करने लगे तथा जलके भरे हुए घड़े पर स्थित हो काक शब्द करे स्त्री और धनकी प्राप्ति होती है। यदि शय्या के ऊपर स्थित होकर काक शब्द करे तो आप्तजनों की प्राप्ति होती है। गायकी पीठ पर बैठकर या दूर्बा पर बैठकर अथवा गोबर पर बैठकर काक चोंच घिसता हो तो अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों की प्राप्ति होती है। धान्य, दूध, दही, मनोहर अंकुर, पत्र, पुष्प, फल, हरे-भरे वृक्ष पर स्थित होकर काक बोलता जाय तो सभी प्रकार के इच्छित कार्य सिद्ध होते हैं। वृक्षों के ऊपर स्थित होकर काक शान्त शब्द बोले तो स्त्रीप्रसंग हो, धन-धान्य पर स्थित होकर शान्त शब्द करे तो धन-धान्यका लाभ हो एवं गायकी पीठ पर स्थित होकर शब्द करे तो स्त्री, धन, यश और उत्तम भोजनकी प्राप्ति होती है। ऊँटकी पीठ पर स्थित होकर शान्त शब्द करे, गधेकी पीठ पर स्थित होकर शान्त शब्द करे तो धनलाभ
और सुखकी प्राप्ति होती है। यदि शूकर, बैल, खाली घड़ा, मुर्दा मनुष्य या मुर्दा पशु, पाषाण और सूखे वृक्षकी डाली पर स्थिर होकर काक शब्द करे तो यात्रामें ज्वर, अर्थहानि, चोरों द्वारा धनका अपहरण एवं यात्रामें अनेक प्रकारके कष्ट होते हैं। यदि काक दक्षिण की ओर गमन करे, दक्षिणकी ओर ही शब्द करे, पीछेसे सम्मुख आवे, कोलाहल करता हो और प्रतिलोम गति करके पीठ पीछेकी ओर चला आवे तो यात्रामें चोट लगती है, रक्तपात होता है तथा और भी अनेक प्रकारके कष्ट होते हैं। बलिभोजन करता हुआ काक बाईं ओर शब्द करता हो और वहाँसे दक्षिणकी ओर चला आवे एवं वामप्रदेशमें प्रतिलोम गमन करता हो, तो यात्रा में अनेक प्रकार के विघ्न होते हैं। आर्थिक हानि भी होती है। यदि गमनकालमें काक दक्षिण बोलकर पीठ पीछेकी ओर चला जाय तो किसीकी हत्या सुनाई पड़ती