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भद्रबाहु संहिता
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(निवर्तन्तो) युद्ध प्रयाण से वापस लौट आता है तो (प्रयातः) आने वाली (परचक्रेण) परचक्र के द्वारा (सोऽपि) वो भी (संयुगे वध्येत) सेना के साथ मारा जाता है।
भावार्थ-निमित्तों को पाकर यदि राजा प्रयाण कर बीच में ही से वापस अपने नगर को लौट आता है तो समझो, आने वाले शत्रु की सेना से राजा मारा जायगा॥८८॥
यदा राज्ञः प्रयातस्य रथश्च पथि भज्यते।
भग्नानि चोपकरणानि तस्य राज्ञो वधं दिशेत् ।। ८९॥ (यदा) जब (राज्ञः) राजा के युद्ध (प्रयातस्य) प्रयाण समय में राजा (रथश्च) रथ (पथि) मार्ग से (भज्यते) टूट जाय और (चोपकरणानि) उपकरण वगैरह (भग्नानि) टूट जाय तो (तस्य) उस (राज्ञो) राजा का (वधं) मरण होगा (दिशेत्) ऐसा समझो।
भावार्थ---युद्ध के लिये प्रयाण करते हुए राजा का रथ मार्ग में भग्न हो जाय अथवा उसके उपकरण टूट जाय तो समझो राजा का मरण होगा ऐसा जानो॥ ८९ ॥
प्रयाणे पुरुषा वाऽपि यदि नश्यन्ति सर्वशः।
सेनाया बहुशश्चाऽपि हता दैवेन सर्वशः ॥१०॥ (प्रयाणे) राजा के प्रयाण समय में (सर्वश:) अनेक (पुरुषा) पुरुष (यदि) यदि (नश्यन्ति) मरते हैं (वाऽपि) तो (सेनाया) सेना के भी (सर्वशः) अनेक पुरुष (दैवेन हता) भाग्यवश मारे जाते हैं।
भावार्थ-राजा के युद्ध प्रयाण समय में यदि अनेक लोग अकस्मात मरण को प्राप्त होते हैं तो समझो सेना के भी अनेक लोग मारे जाते हैं॥९०॥
यदा राज्ञः प्रयातस्य दानं न कुरुते जनः।
हिरण्यव्यवहारेषु साऽपि यात्रा न सिद्धयति ॥११॥ (यदा राज्ञः) जब राजा के (प्रयातस्य) प्रयाण काल में (हिरण्य) सोने का (दान) दान (जनः) उनके ही जन (कुरुते) करते हैं तो (व्यहारेषु) व्यवहार में (साऽपि) उसको भी (यात्रा न सिद्धयति) यात्रा सफल नहीं होती हैं।
भावार्थ-राजा के प्रयाण काल में उसके ही लोग यदि सोने का दान करने लगे तो उस राजा की यात्रा सिद्ध नहीं होती है।। ९१ ।।।