________________
२१९
त्रयोदशोऽध्यायः
प्रवरं घातयेद् भृत्यं प्रयाणे यस्य पार्थिवः ।
अभिषिञ्चेत् सुतं चापि चभूस्तस्यापि बध्यते॥१२॥ (प्रयाणे) प्रयाण काल में (यस्य) जिस (पार्थिवः) राजा के (प्रवर) प्रधान (भृत्यं) नौकर का (धातयेद्) घात हो जावे और (सुतं) उसके पुत्र का (अभिषिञ्चेत्) अभिषेक राजा करे तो (चापि) उसकी भी (चमूस्तस्यापि बध्यते) सेना मारी जाती
भावार्थ- युद्ध प्रयाण काल में यदि राजा के प्रधान नौकर का मरण हो जाय और राजा को उसके पुत्र का नियुक्ति प्रधान के स्थान पर करना पड़े तो समझो राजा की सेना युद्ध में हार जायगी॥१२॥
विपरीतं यदा कुर्यात् सर्वकार्य मुहर्मुहः।
तदा तेन परित्रस्ता सा सेना परिवर्तते ।। ९३॥
यदि राजा (सर्वकार्य) अपने सब काम को (मुहर्मुहुः) धीरे-धीरे (विपरीत) विपरीत (यदा) जब (कुर्यात्) करता है (तदा) तब (तेन) उससे (सा सेना) उसकी सेना (परित्रस्ता) कष्ट उठाकर (परिवर्तते) वापस लौट आती है।
भावार्थ-युद्ध प्रयाण काल में अगर राजा ही अपने सर्व कार्य को विपरीत करने लगे तो समझो उसकी ही सेना राजा से त्रस्त होकर वापस लौट आती है उसका साथ नहीं देती। ९३ ।।
परिवर्तेद् यदा वातः सेनामध्ये यदा यदा।
तदा तेन परित्रस्ता सा सेना परिवर्तते॥१४॥ (परिवर्ते) परिवर्तित करती हुई (यदा) जब (वात:) वायु (सेनामध्ये) सेना के अन्दर (यदा यदा) जब-जब चले तो (तदा) तब (तेन) उसके द्वारा (परित्रस्ता) सेना परित्रस्त होकर (सा सेना परिवर्तते) वो सेना वापस लौट आती है।
भावार्थ-जब भी वायु सेना के अन्दर परिवर्तित होकर चले तो वो सेना युद्ध भूमि से वापस लौटकर आ जाती है।। ९४ ।।
विशाखारोहिणीभानु नक्षत्रैरुत्तरैश्च या।
पूर्वाह्ने च प्रयाता बा सा सेना, परिवर्तते॥१५॥ यदि सेना (विशाखारोहिणी भानु) विशाखा नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र सूर्य के