________________
भद्रबाहु संहिता |
२९०
भावार्थ—सेना के प्रयाण काल में यदि सूखी लकड़ियाँ जलने लगे धीरे-धीरे यही हो और जनि की माला धुएँ से सहित हो तो समझो युद्ध क्षेत्र में राजा की सेना वापस लौट आयगी॥६३॥
जुह्वतो दक्षिणं देशं यदि गच्छन्ति चार्चिषः ।
राज्ञो विजयमाचष्टे वामतस्तु पराजयम् ॥ ६४।। यदि सेना के (गच्छन्ति) जाते समय (जुह्वतो) हवन की (चार्चिषः) अग्नि (दक्षिणं देशं) दक्षिण दिशा में दिखाई पड़े तो (राज्ञो विजय माचष्टे) राजा के विजय की सूचना मिलती है (वामतस्तु पराजयम्) और वामभाग में दिखाई पड़े तो राजा की पराजय होगी।
भावार्थ- सेना के दक्षिण भाग में हवन की अग्नि दक्षिण में दिखे तो राजा की विजय होगी, और वाम भाग में दिखे तो समझो राजा की पराजय होगी॥६४॥
जुह्वत्यनुपसर्पणस्थानं तु यत् पुरोहितः।
जित्वा शत्रून् रणे सर्वान् राजा तुष्टो निवर्तते॥६५॥
यदि (पुरोहितः) पुरोहित (जुसत्यनुपसर्पणस्थानं) ढालु स्थान पर हवन करता दिखे और राजा भी उधर ही जा रहा हो (तु) तो (सर्वान्) सबको (रणे) रणमें (शत्रून) शुत्रओं को (जित्वा) जीतकर (राजा तुष्टो निवर्तते) राजा सन्तुष्टि को प्राप्त करता है।
____ भावार्थ-यदि पुरोहित राजा जिधर गमन कर रहा हो और उधर ही ढलाव स्थान पर बैठकर हवन करता हो तो समझो राजा युद्ध में सब शत्रुओं को जीतकर सन्तुष्ट होता है॥६५॥
यस्य वा सम्प्रयातस्य सम्मुखो पृष्ठतोऽपि वा।
पतत्युल्का सनिर्घाता वधं तस्य निवेदयेत् ।। ६६॥ (यस्य वा) जिस राजा के (सम्प्रयातस्य) प्रयाण समय में (उल्का) उल्का (सम्मुखो पृष्ठतोऽपि वा) सामने व पीछे (सनिर्घाता) घर्षण करती हुई (पतत्य) गिरे तो (तस्य) उस राजा का विधं) वध होगा ऐसा (निवेदयेत्) निवेदन किया