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त्रयोदशोऽध्यायः
गन्धो) मुद्रा जैसी दुर्गन्ध वाला हो (वा) अथवा (पीतको वा भवेत्) पीले रंग का होता (तदा) तब (सेनापराजयः) सेना की पराजय समझो।
भावार्थ-यदि सेना के आगे हवन करते समय धुआँ मुद्रा के समान दुर्गन्ध देता हो अथवा पीले रंग का हो तो समझो सेना की पराजय होगी।६०॥
मूषको नकुलस्थानो वराहो गच्छत्तोऽन्तरा।
धामावर्तः पतङ्गो वा राज्ञो व्यसनमादिशेत् ।। ६१॥ यदि प्रयाण काल में (मूषको) मूषक (नकुल) नेवला (वराहो) शूकर (स्थानो गच्छतोऽन्तरा) स्वस्थान से पीछे की ओर आते हुए दिखाई पड़े (वा) अथवा (धामावर्तः पतङ्गो) पतग आदि उड़ती हुई दिखे तो, (राज्ञो) राजा के (व्यसनमादिशेत्) व्यसन की सूचना देता है।
भावार्थ-यदि प्रयाणकाल में चूहा, नेवला, शूकर पीछे से आते हुए दिखे अथवा पतकादि उड़ते हुए दिले तो साझोपना को कष्ट होगा॥६१।।
मक्षिका वा पतङ्गो वा यदूऽप्यन्यः सरीसृपः।
सेनाग्रे निपतेत् किञ्चिद्धूयमाने वधं वदेत्॥१२॥ (सेनाग्रे) सेना के आगे, (मक्षिका वा) मधुमक्खियाँ, (पतङ्गो वा) और पतले (यद्वऽप्यन्य:) व अन्य (सरीसृपः) पेट से रेंगने वाले जीव (किञ्चिद्भूयमाने निपतेत) उड़ते हुए आगे गिरे तो (वधं वदेत्) सेना का वध समझो।
भावार्थ-यदि सेना के आगे उड़ते हुए, पतङ्ग अथवा मधुमक्खियाँ और भी सरीसृपादिक गिरे तो समझो सेना का वध होगा।। ६२॥
शुष्कं प्रदह्यते यदा वृष्टिश्चाप्यप वर्षति ।
ज्याला धूमाभिभूता तु तत: सैन्यो निवर्वते।।६३॥ (यदा) जब सेना के प्रयाण काल में (शुष्कं प्रदह्यते) सूखे काष्ठ जलने लगे और (वृष्टिश्चाप्यपवर्षति) मन्द-मन्द वर्षा भी हो (ज्वालाधूमाभिभूता) अग्नि की ज्वाला धुएँ से सहित हो (तु) तो (ततः) उस राजा की (सैन्यो निवर्तते) सेना निवृत हो जाती है।