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भद्रबाहु संहिता
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और हड्डी (सेनाग्रे) सेना के आगे (यमानस्य) हवन के समय (पुन: पुन:) बार-बार गिरे तो (तत्र) वहाँ (मरणं) मरण का (निर्दिशेत) निर्देशन किया है।
भावार्थ-यदि सेना के आगे हवन के समय घी के पात्र में केश, राख, हड्डी बार-बार गिरे तो समझो राजा का और उसकी सेना का अवश्य मरण होगा ऐसी सूचना यह निमित्त देते है।। ५७॥
आपो होतुः पतेद्धस्तात् पूर्णपात्राणि वा भुवि।
कालेन स्याद्वधस्तत्र सेनाया नात्र संशयः॥५८॥ यदि (होतुः) हवन करने वाले के हाथ से (आपो) पानी (पतेद्धस्तात्) नीचे गिर पड़े (वा) और (भुवि) भूमि पर (पूर्णपात्राणि) पूर्ण पात्र ही गिर पड़े तो (कालेन) कुछ ही समय में (तत्र) वहाँ की (सेनाया) सेना (स्याद्वधः) का अध पतन हो जाता है (नात्र संशयः) इसमें कोई संशय नहीं है।
भावार्थ-यदि हवन करने वाले के हाथ से पानी गिर पड़े व पूरा पात्र ही हाथ से गिर पड़े तो भी राजा को अपना प्रयाण रोक देना चाहिये नहीं तो सेना सहित राजा का मरण हो जायगा इसमें कोई सन्देह नहीं है॥५८॥
यदा होता तु सेनायाः प्रस्थाने स्खलते महः ।
बाधयेद् ब्राह्मणान् भूमौ तदा स्ववधमादिशेत् ।। ५९॥ (सेनायाः प्रस्थाने) सेना के प्रस्थान काल में (यदा) जब (होता) हवन करने वाला (स्खलते मुहुः) बार-बार स्खलित होता है (भूमौ) पृथ्वी पर (ब्राह्मणान् बाधयेद) बाहाणों को बाधा पहुंचाता हो (तु) तो (तदा) तब (स्ववधमादिशेत्) अपना वैध
समझो।
भावार्थ—सेना के प्रयाण काल में यदि हवन करने वाला बार-बार स्खलित हो और भूमि पर ब्राह्मणों को बार-बार पीड़ा पहुँचाए तो समझो राजा के वध की सूचना मिलती है याने राजा का स्वयं वध हो जायगा ।। ५९॥
धूमः कुणिपगन्धो वा पीतको वा यदा भवेत्।
सेनाग्रे हूयमानस्य तदा सेना पराजयः॥६०॥ (सेनाग्रे हूयमानस्य) सेना के आगे हवन करते समय (धूमः) धुआँ (कुणिप