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त्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ राजा के प्रयाण समय में उल्का घर्षण करती हुई सामने या पीछे गिरे तो समझो राजा का वध अवश्य होगा॥६६।।।
सेनां यान्ति प्रयातां यां क्रव्यादाश जुगुप्सिताः।
अभीक्षणं विस्वरा धोराः सा सेना वध्यते परैः ॥६७॥ (सेनां प्रयातां यान्ति) सेना प्रयाण करती है (यां) उस समय में (क्रव्यादा: जुगुप्सिताः) मांस भक्षी जीव जुगुप्सा भाव से (अभीक्ष्ण) प्रतिक्षण (घोरा: विस्वरा) घोर विस्वर करते है तो (सा) उस (सेना) सेना का (वध्यतेपरै) वध हो जाता है।
भावार्थ सेना के प्रयाण समय में यदि शेर, व्याघ्र, गिद्धादि मांस भक्षी जीव भयंकर शब्द बार-बार करे, और सेना के आगे-आगे जावे तो समझो राजा सहित सेना का वध हो जायगा ॥६७॥
प्रयाणे निपतेदुल्का प्रतिलोमा यदा चमूः।
निवर्तयति मासेन तत्र यात्रा न सिध्यति॥१८॥ (यदा) जब (प्रयाणे) सेना के प्रयाण काल में (प्रतिलोमा) प्रतिलोमरूप में (उल्का) उल्का (निपतेद्) गिरे तो (चमूः) सेना (मासेन) एक महिने में (निवर्तयति) निवृत हो जाती है (तत्र यात्रा न सिध्यति) और वहाँ की यात्रा की सिद्ध नहीं होती है।
भावार्थ-जब सेना के प्रयाण काल में सेना के प्रतिलोम भाग में उल्का गिरे तो समझो, सेना युद्ध क्षेत्र से एक महीने में वापस लौट आयेगी, और उसकी यात्रा भी सिद्ध नहीं होगी।६८॥
छिन्ना भिन्ना प्रदृश्येत तदा सम्प्रस्थिता चमूः।
निवर्तयेत सा शीघ्रं न सा सिद्धयति कुत्रचित् ॥ ६९॥ यदि उल्का (छिन्ना) छिन्न रूप व (भिन्ना) भिन्न रूप (प्रदृश्येत) दिखाई पड़े (तदा) उस समय (सम्प्रस्थिता) प्रयाण करे (चमू:) सेना तो (सा शीघ्रं) वह सेना शीघ्र ही (निवर्तयेत) निवृत्त हो जायगी, (न सा सिद्धयति कुचित्) उसकी यात्रा सिद्ध नहीं होगी।