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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-जो पुरोहितादि अल्पज्ञानी होने पर भी उपर्युक्त लक्षणों से यदि सम्पन्न हो तो वही बुद्धिमान है और वही सभी राजकार्य की सिद्धि में कारण बन जाता हैं इसलिये ऐसे ही व्यक्ति को नियुक्त करे ।। २६॥
अपि लक्षणवान् मुख्यः कञ्चिदर्थ प्रसाधयेत्। __ न च पक्षण दिगस्तु गिजामपि न झाल्येत्॥२७।।
थोड़ा ज्ञानी होने पर (अपि) भी (लक्षणवान् मुख्यः) उपर्युक्त लक्षण उसमें हो तो (कञ्चिदर्थं प्रसाधयेत्) कार्य को सिद्धि करने वाला होता है (च) और (लक्षण हीनस्तु न) लक्षणों से रहित है तो (विद्वानपि न साधयेत्) विद्वान होने पर भी कार्य की सिद्धि नहीं कराता है।
भावार्थ-लक्षणों से सहित थोड़ा ज्ञानी भी सभी कार्य सिद्ध करा सकता है, विशेष विद्वान् भी हो और उपर्युक्त लक्षणों से रहित हो तो कार्य को नष्ट कर देता है कार्य सिद्धि नहीं करा सकता है।। २७।।।
यथान्धः पथिको भ्रष्टः पथिक्लिश्यत्यनायकः।
अनैमित्तस्तथा राजा नष्टे श्रेयसि क्लिश्यति॥२८॥ (यथान्धः) जैसे अन्धा (पथिको) पथिक (नायकः) नायक के बिना (पथि भ्रष्ट:) पथ भ्रष्ट होकर (क्लिश्यत्य) क्लेश उठाता है (तथा) उसी प्रकार (अनैमित्तः) निमित्त ज्ञानी के बिना (राजा नष्टे) राजा का कार्य नष्ट हो जाता है।
__ भावार्थ-जैसे नायक के बिना अन्धा पथभ्रष्ट हो जाता है. उसी प्रकार निमित्त ज्ञानी के बिना राजाका कार्य नष्ट हो जाता है॥२८॥
यथा तमसि चक्षुष्मान रूपं साधु पश्यति।
अनैमित्तस्तथा राजा न श्रेयः साधु यास्यति॥२९॥ (यथा) जिस प्रकार (तमसि) अन्धेरे में (चक्षुष्मान्) आँखों वाला भी (रूपं न पश्यति) रूप को नहीं देख सकता है (तथा) उसी प्रकार (अनैमित्तः) अनैमित्तक के बिना (साधु) राजा (श्रेयः) श्रेय (यास्यति) प्राप्त (न) नहीं कर सकता है।