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त्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ-जिस प्रकार अन्धेरे में आँखों वाला होने पर भी रूप को व्यक्ति नहीं देख सकता है उसी प्रकार निमित्त ज्ञानी के बिना राजा कभी-भी कार्य सिद्ध नहीं कर सकता है।। २९ ।।
यथा वक्रो रथो गन्ता चित्रं यति यथा च्युतम्।
अनैमित्तस्तथा राजा न साधुफलमीहते॥३०॥ (यथा) जैसे (वक्रो) टेड़े (यति) मार्ग में (रथो) रथ (गन्ता) जाता हुआ भी (चित्र) अच्छी तरह से नहीं जाता (च्युतम्) है मार्गच्युत हो जाता है। (तथा) उसी प्रकार (राजा) राजा (अनैमित्तः) भी नैमित्त के बिना (श्रेय:) श्रेयता को (साधु) राजा (न) नहीं (फलमीहते) प्राप्त करता है।
भावार्थ—जिस प्रकार टेड़े मार्ग से चलता हुआ रथ मार्ग भ्रष्ट हो जाता है उसी प्रकार निमित्तक के बिना राजा राजकार्य से भ्रष्ट हो जाता है॥३०॥
चतुरङ्गान्वितो युद्धं कुलालो वर्तिनं यथा।
अवनिष्टं न गृह्णाति वर्जितं सूत्रतन्तुना ॥३१॥ (यथा) जैसे (कुलालो) कुम्हार (सूत्र तन्तुना वर्जित) सूत्र, तन्तु से रहित होकर (वर्तिन) मिट्टी के बर्तन नहीं बना सकता है, उसी प्रकार राजा भी (चतुरङ्गान्वितो) चतुरङ्ग सेना से युक्त होने पर भी (युद्ध) युद्ध में (अवनिष्ट न गृह्णाति) निमित्तक के बिना सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है।
भावार्थ-जैसे कुम्हार दण्ड, चाक, मिट्टी आदि से सहित होने पर भी सूत्र के बिना बर्तन नहीं बना सकता उसी प्रकार राजा भी चतुरंग सेना सहित होने पर भी निमित्तक के बिना सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है॥३१ ।।
चतुरङ्गबलोपेतस्तथा राजा न शक्नुयात्।
अविनष्टफलं भोक्तुं नैमित्तेन विवर्जितः ॥३२॥ (चतुरंग बलोपेतः) चतुरंग सेना से युक्त होने पर भी, (तथा) जैसे (नैमित्तेन) नैमित्तक (विवर्जित:) रहित हो तो (राजा) राजा (अविनष्टफलं भोक्तं न शक्नुयात्) युद्ध में सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है।