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प्रयोदशोऽध्यायः
भावार्थ-यात्राके समय अवश्य ही यात्री को इन बातों का ध्यान देना चाहिये तबही उसकी यात्रा सफलता को प्राप्त होती है, ग्रह, नक्षत्र, तिथि, मुहूर्त, करण, स्वर, लक्षण, व्यंजन, उत्पात, साधु, मंगल आदि निमित्तो को परदेश गमनार्थि अवश्य देखे।।६।।
यस्माद्देवासुरे युद्धेनिमित्तं दैवतैरपि।
कृतं प्रमाणं तस्मात् विविधं दैवतं मतम्॥७॥ (यस्माद्देवासुरे युद्धे) जिस प्रकार देव व असुरों के युद्ध में (दैवतैरपि) देवताओं ने भी (निमित्तं) निमित्त को (प्रमाणं) प्रमाण (कृत) किया था, (तस्मात्) इस कारण से (विविध) विविध प्रकार के (दैवतंमतम्) निमित्तोको यात्रा करने वाले को देखना चाहिये।
__ भावार्थ-जब देवों का और असुरों का युद्ध हुआ था, तब देवों ने मिलकर अपनी विजय के लिये इन उपर्युक्त निमित्तों को देखा था, इसलिये राजा हो या कोई भी यात्रा के पहले उपर्युक्त निमित अवश्य देखे नहीं तो यात्रा की सिद्धि कभी नहीं हो सकती है।।७||
हस्त्यश्वरथपदातं बलं खलु चतुर्विधम् ।
निमित्ते तु तथा ज्ञेयं यत्र तत्र शुभाऽशुभम्॥८॥ (हस्त्य) हाथी, (अश्व) घोड़ा, (रथ) रथ (पादातं) पैदल चलने वाले (बल) इस प्रकार राजा की सेना का (खलु) निश्चिय से (चतुर्विघम्) चार भेद हैं (तथा) उसी प्रकार (निमित्तेनु) निमित्तज्ञको (यत्र तत्र शुभाऽशुभम्) जहाँ-तहाँ सेना का शुभाशुभको (ज्ञेयं) जान लेना चाहिये।
भावार्थ-राजाकी सेनाके चारभेद हैं, हाथी, घोड़े, रत, पैदल और ये ही चार प्रकार की शक्ति हैं इसलिये निमित्तज्ञ को इनके ऊपर ही विचार कर शुभाशुभ जान लेना चाहिये।॥ ८॥
शनैश्वरगता एव हीयन्ते हस्तिनो यदा।
अहो रात्रान्यमाक्रोधुः तत्प्रधान वधस्मृतः ॥९॥ (यदा) जब कोई राजा (शनैश्वरगता) शनिवार को यात्रा के लिये चले तो