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भद्रबाहु संहिता
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(शिशुम्) बालक (कृतघ्नं) कृतघ्न (चपलं) चंचल, (भीरूं) भयवान, (शठम्) शठ (श्रीर्जहात्य) राजाकी लक्ष्मी नष्ट हो जाती है (बुध) ऐसा बुद्धिमान् जानो।
भावार्थ-यदि राजा अहंकारी हो, क्रूर हो याने दया से रहित हो। नास्तिक है, माने धर्म से रहित हो, चुगलखोर हो बालक हो, किये हुऐ उपकार भुलाने वाला हो, अत्यन्त चंचल बुद्धिवाला हो, भयवान हो धूर्त हो तो उसकी लक्ष्मी शीघ्र नष्ट हो जाती है।। ३।
वृद्धान् साधून् समागम्य दैवज्ञांश्च विपश्चितान्।
ततो यात्राविधिं कुर्यान् नृपस्तान् पूज्य बुद्धिमान्॥४॥ __ (पूज्य) पूज्य (वृद्धान्) वृद्धोंका (साधून) साधुओंका (देवज्ञांश्च) निमित्तज्ञों का (विपश्चितान समागम्य) अच्छी रह से सम्मान कर (बुद्धिमान्) बुद्धिमान (नृपस्तान) राजा को (ततोयात्राविधिं कुर्यान्) उसी तरह यात्रा करनी चाहिये।
भावार्थ-बुद्धिमान राजा को प्रथम वृद्धोंका, निर्ग्रन्थ साधुओं का और ज्योतिषियों का अच्छी तरह सम्मान करके यात्रा करे ।। ४ ।।
राज्ञा बहुश्रुतेनापि प्रष्टज्या ज्ञाननिश्चिताः।
अहंकारं परित्यज्य तेभ्यो गृह्णीत निश्चयम्॥५॥ (राज्ञा) राजा को (बहुश्रुतेनापि) बहुश्रुतवानका (अहंकार) अहंकार (परित्यज्य) छोड़कर (ज्ञाननिश्चिता:) निमित्तज्ञ से (प्रष्टव्या) पूछकर (तेभ्यो) उसका, यात्राका (निश्चयम्) निश्चय (गृह्णीत) करना चाहिये।
भावार्थ—यदि राजा अनेक शास्त्रों का जानकार भी हो तो भी अपने ज्ञान का अहंकार छोड़कर यात्रा के समय निमित्तज्ञ से पूछकर ही यात्रा करनी चाहिये ।। ५॥
ग्रहनक्षत्रतिधयो मुहूर्त करणं स्वराः।
लक्षणं व्यञ्जनोत्पातं निमित्तं साधु मङ्गलम्॥६॥ (ग्रह) ग्रह (नक्षत्र) नक्षत्र, (तिथयो) तिथि (मुहूर्त) मुहूर्त (करण) करण (स्वरा:) स्वर (लक्षणं) लक्षण, (व्यञ्जनोत्पातं) व्यञ्जन, उत्पात और (साधुमङ्गलम्) साधु मंगलादि (निमित्तं) निमित्तो का यात्राके समय अवश्य ही विचार करना चाहिये।