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भद्रबाहु संहिता
सुसंस्थाना: सुवर्णाश्च सुवेषा स्वभ्रजा सुविन्दवः स्थितागर्भाः सर्वे सर्वत्र
घनाः ।
पूजिताः ॥ २७ ॥
यदि गर्भ (सुसंस्थाना) अच्छे संस्थान वाले, (सुवर्णाश्च) सुवर्ण वाले (सुवेषा) सुवेष वाले ( स्वभ्राजा घनाः) बादलों से सहित (सुविन्दवः) बिन्दुओं सहित (स्थितागर्भा:) स्थित हो तो वो (सर्वे) सब ही ( सर्वत्र पूजिता: ) सब जगह पूजित
है |
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भावार्थ- गर्भ यदि अच्छे संस्थान वाले, सुवर्ण वाले सुवेष वाले बादलों से सहित, सुबिन्दुओं से सहित हो और गर्भ स्थित हो तो वे गर्भ सर्वत्र पूजित होते हैं ॥ २७ ॥
कृष्णा रूक्षा: सुखण्डाश्च विद्रवन्तः पुनः पुनः । विस्वरा रूक्षशब्दाश्च गर्भाः सर्वत्रनिन्दिताः ॥ २८ ॥
(कृष्णा) काले, ( रूक्षा) रूक्ष, (सुखण्डाश्च) खण्ड-खण्ड रूप, (विद्रवन्तः ) बनते बिगड़ते (पुनः पुनः ) पुन: पुन: ( विस्वरा) विश्वर करने वाले ( रूक्षशब्दाश्च ) रूक्ष शब्द करने वाले (गर्भा:) गर्भ ( सर्वत्रनिन्दिता: ) सब जगह निन्दित होते हैं। भावार्थ -- जो गर्भ काले हो, रूक्ष हो, खण्ड-खण्ड हो, बार-बार बनते बिगड़ते हो, विश्वर करने वाले हो, कठोर शब्दों से युक्त हो ऐसे गर्भ सर्वत्र निन्दित होते हैं ।। २८ ।।
अन्धकार समुत्पन्ना गर्भास्ते तु न पूजिता: ।
चित्रा: स्रवन्ति सर्वाणि गर्भाः सर्वत्रनिन्दिताः ॥ २९ ॥
( अन्धकार समुत्पन्ना ) कृष्णपक्ष में उत्पन्न (गर्भा:) गर्भ (ते) वे (पूजिता: ) पूजित (न) नहीं हैं ( चित्रा : ) चित्रा नक्षत्र में ( सर्वाणिगर्भाः ) सब गर्भ ( सवन्ति ) देखकर स्रवित होते है (तु) तो ( सर्वत्र ) सब जगह ( निन्दिताः) निन्दित होते हैं।
भावार्थ - यदि गर्भ कृष्ण पक्ष में दिखे तो वे गर्भ शुभ नहीं है और चित्रा नक्षत्र में गर्भ उत्पन्न होते है तो वो भी निन्दित है, ऐसे गर्भों से कोई लाभ नहीं होता अशुभ होते हैं ।। २९ ।।