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द्वादशोऽध्यायः
भावार्थ---जो गर्भ स्निग्ध हो काले हो लाल हो पीले हो सफेद हो व्यामिश्र हो तो सर्वत्र पूजित हैं शुभ हैं।। २३ ॥
अप्सराणां तु सदृशाः पक्षिणां जल चारिणाम।
वृक्ष पर्वत संस्थाना गर्भाः सर्वत्र पूजिताः ।। २४ ॥ (अप्सराणांतु) अप्सराओं के समान व (पक्षिणां जल चारिणाम्) पक्षियों के सदृश जलचर जीवों के समान (वृक्षपर्वतसंस्थानां) वृक्ष, पर्वत के आकार वाले (गर्भाः) जो गर्भ होते है तो (सर्वत्र पूजिता:) वो गर्भ सब जगह पूजे जाते हैं।
___ भावार्थ-जो गर्भ अप्सराओं के आकार पक्षियों के आकार, जलचरजीवी के आकार वृक्ष या पर्वत के आकार के हो तो समझो वे गर्भ सर्वत्र पूजित और शुभ होते हैं।। २४ ।।
वापीकूप तडागाश्च नद्यश्चापि मुहुर्मुहुः ।
पूर्यन्ते ताशैर्ग: स्तोयक्लिन्ना नदीवहैः ।। २५ ।। (तादृशेर्गभै) इस प्रकार के गर्भ (मुहर्मुहः) धीरे-धीरे बरसते है (वापीकूप) कुआँ, बावडी, (तडागाश्च) तालाब (नद्यश्चापि) नदी आदि का भी (पूर्यन्ते) भर जाते हैं (स्तोयक्लिन्ना नदीवहै:) नदियों में पूर आ जाते हैं।
भावार्थ-इस प्रकार के गर्भ धीरे-धीरे पानी बरसाते हैं बावड़ी, कुएँ, तालाब, नदी, सरोवरादिक भर जाते हैं नदियों पूर आ जाते है॥२५ ।।
नक्षत्रेषतिथौ चापि मुहर्ते करणे दिशि।
यत्रयत्रसमुत्पन्नाः गर्भाः सर्वत्र पूजिताः ॥२६॥ (नक्षत्रेषु) नक्षत्रोंमें (तिथौचापि) तिथियों में (मुहूर्ते) मुहूर्तो में (करणे) करण में (दिशि) दिशाओंमें (यत्रयत्रसमुत्पन्नाः) जहाँ-जहाँ उत्पन्न होने वाले (गर्भाः) गर्भ (सर्वत्र पूजिता:) सब जगह पूजित होते हैं शुभ है।
भावार्थ-यदि गर्भ नक्षत्रों में तिथियों में मुहर्तों के करणों में दिशाओं में जहाँ-जहाँ दिखते है वहाँ-वहाँ ही पूजित होते हैं।। २६ ।।