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— भद्रबाहु संहिता |
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दिशा में उठकर दिखे तो (ते) वे (मध्यम) मध्यम (वर्ष) वर्षा को (सम्रवन्ति) बरसाते है (शस्य सम्पत्यमेव च) और धान्य रूपी सम्पति (दधुः) देते हैं।
भावार्थ----जो गर्भ वायव्य कोण या पश्चिम दिशा से दिखे तो समझो मध्यम वर्षा होगी, लेकिन धान्यो की उत्पति अच्छी होगी॥२० ।।
शिष्टं सुभिक्षं विज्ञेयं जघन्या नात्रसंशयः।
मन्टगाश्च घना वा च मर्वतश्च सुपूजिताः ।। २१ ।। यदि दक्षिणा दिशा के गर्भ (शिष्ट) शिष्ट, (सुभिक्षं) सुभिक्षता को करने वाले, (जघन्या) जघन्य (मन्दगाश्च) मन्दगति वाले (घना) गर्भ अच्छे (विज्ञेया) जानना चाहिये (सर्वतश्चसुपूजिता:) सब जगह ही पूजे जाने वाले होते है (नात्र संशय:) इसमें कोई सन्देह नहीं हैं।
भावार्थ--यदि गर्भ दक्षिण दिशासे दिखे और वो भी शान्त हो, शिष्ट हो, सामान्य हो तो सुभिक्षता करने वाले है मन्दगति से चलने वाले गर्भ की सब जगह पूजा होती है इसमें कोई सन्देह नहीं करना चाहिये ।। २१ ।।
मारुतः तत्प्रभवा; गर्भा धूयन्ते मारुतेन च ।
वातो गर्भश्च वर्षश्च करोत्यप करोति च ॥ २२॥ (मारुतः) हवासे (तत्प्रभवा) प्रभावित (गर्भा) गर्भ (मारुतेनच धूयन्ते) हवासे ही धोये जाते है (वातो) वायुसे प्रभावित (गर्भश्च) गर्भ है (करोत्यप करोति च) उनको वायु ही नष्ट कर देती है।
___ भावार्थ-हवा से प्रभावित गर्भ हवामें ही उड़ते रहते है क्योंकि वायु गर्भो को टिकने नहीं देता, वायु चलते ही गर्भ पलायमान हो जाते हैं।२२।।
कृष्णा नीलाश्च रक्ताश्चपीता: शुक्लाश्च सर्वतः ।
व्यामिश्राश्चापि ये गर्भाः स्निग्धाः सर्वत्र पूजिताः॥२३॥ (ये) जो (गर्भाः) गर्भ, (स्निग्धा:) स्निग्ध हो, (कृष्णा नीला श्च) काले, नीले और (रक्ताश्च) लाल हो (पीताशुक्लाश्च) पीले हो सफेद हो (व्यामिश्राश्चापि) मित्र हो तो वो भी (सर्वत:) सब जगह (सर्वत्र पूजिता:) सब तरह से पूजित होते