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द्वादशोऽध्यायः
मन्दवृष्टिमनावृष्टिभयं
राजपराजयम्। दुर्भिक्षं मरणं रोगं गर्भाः कुर्वन्ति तादृशम् ॥ ३०॥ वे (गर्भाः) गर्भ, (मन्दवृष्टिं) मन्दवृष्टि, (अनावृष्टि) अनावृष्टि, (भयं) भय, (राजपराजयम्) राजा की पराजय (दुर्भिक्षं) दुर्भिक्ष, (मरणं) मरण, (रोग) रोगादि (तादृशम्) उसी प्रकार (कुर्वन्ति) करते हैं।
भावार्थ---उपर्युक्त गर्भ, अनावृष्टि, मन्द वृष्टि भय, राजाकी पराजय, दुर्भिक्ष, प्रजाका मरण, रोग इत्यादि उत्पन्न करते हैं। ३० ।।
मार्गशीर्षे तु गर्भास्तु ज्येष्ठामूलं समादिशेत् । पौषमासस्य गर्भास्तु विन्द्यादाषादिकां बुधाः॥३१॥ माघजात् श्रवणे विन्द्यात् प्रोष्ठपदे च फाल्गुनात् ।
चैत्रमश्वयुजेविन्द्याद् गर्भ जल विसर्जनम् ।। ३२ ।। (मार्गशीर्षे) मार्गशीर्ष में (गर्भाः) गर्भ दिखे (तु) तो (ज्येष्ठा मूलं) ज्येष्ठा या मूलनक्षत्र में बरसते है (समादिशेत्) ऐसा कहा है, (पौसमासस्य गर्भास्तु) पौष महीनेके गर्भ (आषाढिका) पूर्वाषाढ़ामें बरसे ऐसा (बुधाः) बुद्धिमानो को (विन्द्याद्) जानना चाहिये, (माघजात) माघ में दिखने वाले गर्भ (श्रवणे) श्रवण नक्षत्रमें बरसते हैं (विन्द्याद्) जानना चाहिये, (चैत्रामश्वयुजेविन्द्याद्) चैत्र में दिखने वाले गर्भ अश्विनी नक्षत्रमें (जलविसर्जनम्) जल विर्सजन करते हैं (प्रोष्ठपदे च फाल्गुनात्) भाद्र में दिखे तो (पूर्वाफाल्गुनीमे) पानी बरसे।
भावार्थ—मार्गशीर्ष में गर्भ दिखे तो ज्येष्ठा या मूल नक्षत्रमें जल की वर्षा होती है तो पौष में गर्भ दिखाई पड़े तो पूर्वाषाढ़ा में जल बरसाते हैं। माघ महीनेमें गर्भ दिखे तो श्रवण नक्षत्रमें बरसे और भाद्र में दिखे तो पूर्वाफाल्गुनी में वर्षा होती है, चैत्र मास में गर्भ दिखे तो अश्विनीनक्षत्र में वर्षा होती है ऐसा जानो।। ३१-३२।।
मन्दोदाप्रथमे मासे पश्चिमें ये च कीर्तिताः।
शेषा बहूदका ज्ञेयाः प्रशस्तैर्लक्षणैर्यदा ।। ३३ ।। (प्रथमे मासे मन्दोदा) उपर्युक्त गर्भ पहले महीने में कम वर्षा होती है। (च)