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द्वादशोऽध्यायः
शुभ और (तदाऽशुभा) अशुभ रूप है अशुभरूप गर्भ (पापलिङ्गा) पापरूप है (निरुदका) पानी से रहित होते है (भयंदधुर्नसंशय:) भय को उत्पन्न करते हैं इसमें कोई सन्देह नहीं है, और भी (उल्कापातो) उल्कापातसे (अथनिर्घाता:) घात होता है (दिग्-दाहा) दिग्दाह होगा, (पांशुवृष्टयः) धूलि की वर्षा होगी (गृहयुद्धं) गृहयुद्ध होगा, (निवृत्तिश्च) निवृत्ति का होना (चन्द्र सूर्ययोः ग्रहण) चन्द्र सूर्य को ग्रहण लगना (ग्रहाणां चरितं चक्रं) ग्रहों का चक्र विचित्र होना, (साधूनां कोप सम्भवम्) साधुओं को क्रोध होना (गर्भाणामुपघाताय) गर्भा का घात होना इसलिये (न) न (ते) वे अशुभ गर्भ (ग्राह्या) ग्रहण नहीं करना चाहिये (विचक्षणैः) बुद्धिमानो को।
__ भावार्थ- गर्भ विविध प्रकार के होते हैं एक शुभ और एक अशुभ, अशुभ गर्भ पापरूप होते है, पानी नहीं बरसने देते है भय को उत्पन्न करते है इसमें कोई सन्देह नहीं है वो अशुभ गर्भ उल्कापात करते है दिशा दाह करते है धूलि की वृष्टि करते है, गृहयुद्ध होता है गृह से निवृत्ति होती है चन्द्र सूर्य को ग्रहण लगाने वाले होते हैं ग्रहों के विचित्र चक्र होते हैं साधुओं को क्रोध आयेगा, ग्रहोंका घात होगा इसलिये बुद्धिमानो को अशुभ गर्भ ग्रहण नहीं करना चाहिये॥९-१०-११।।
धूमं रजः पिशाचांश्च शस्त्रमुल्का सनागजः। तैलं घृतं सुरामस्थि क्षारं लाक्षां वासं मधु ॥१२॥ अङ्गारकान् मखान् केशान् मांसशोणित कईमान् ।
विपच्यमाना मुञ्चन्ति गर्भाः पापभयावहाः ।।१३।। (पापगर्भाः) पापरूप गर्भ (विपच्यमाना) पकजाने पर (भयावहा:) भयानक होते हैं (धूम) धूम, (रज:) धूलि, (पिशाचांश्च) पिशाच रूप (शस्त्र) शस्त्र रूय (उल्कां) उल्कारूप (स नागजः) हाथीयोंका विनाश (तैलं) तेल, (घृतं) घी (सुरामस्ति) शराब हड्डीरूप (क्षार) खार, (लाक्षां) लाख (वसां) मेघ (मधु) मधु (अङ्गारकान्) अंगारे, (मरवान्) नख (केशान) केश (मांस शोणित कईमान्) मास, रक्त कीचड, (मुञ्चन्ति) को छोड़ते हैं याने इन पदार्थों की वर्षा करते हैं।
भावार्थ- जो गर्भ पापरूप याने अशुभ हो पक्के हुऐ हो तो समझो वो गर्भ भयानक होते है और धूम, धूलि, पिशाच, शस्त्र, मुल्का, हाथी, तेल, घी,