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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ सभी नक्षत्रों में और सभी मुहूर्तों में गर्भ धारण होता है ऐसा कहा गया है वो गर्भ धारण छह महीने फलरूप पानी वर्षा होती है ॥ ६ ॥
गर्भधानादयो मासास्तेन माला अवधारिणः । विपाचन त्रयश्चापि त्रयः कालाभिवर्षणाः ॥ ७ ॥
(गर्भाधानाद) गर्भधानका (यो) जो (मासा) महीना है (ते) उसही (मासा) महीने में ( अवधारिण: ) अवधारण करता है उसका काल (त्रयश्चापि ) तीन मासमें ( विपाचन ) पाचन होता है और (त्रयः) तीन महीनेके ( कलाभिवर्षणा) कालमें बरसता
है ।
भावार्थ गर्भाधान का जो समय है उसही काल में गर्भ धारण होता है गर्भधारण होने के बाद वो गर्भ तीन महीनेमें पकने लगता है और फिर तीन महीनेमें बरसने लगता है ॥ ७ ॥
शीतवातश्च सर्वगर्भेषु
विद्युच्च शस्यन्तेनिर्ग्रन्थाः
(सर्वगर्भेषु) सब गर्भधारण के समय में (शीतवातश्च) शीतवायु हो, (विद्युच्च) बिजली चमकती हो (गर्जितं ) गर्जना सहित हो ( परिवेषणम्) परिवेषसे युक्त हो उनको (दर्शिनः ) देखकर (निर्ग्रन्थाः साधु) निर्ग्रन्थ साधु (शस्यन्ते) प्रशंसा करते
हैं।
गर्जितं
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परिवेषणम् । साधुदर्शिनः ॥ ८ ॥
भावार्थ - यदि गर्भ शीतवायु सहित हो, गर्जना सहित हो बिजली सहित हो, परिवेषों से युक्त हो तो उन गर्भोका निग्रन्थसाधु प्रशंसा करते हैं ॥ ८ ॥
शुभाशुभा यदा तदा ।
घुर्न
गर्भास्तुविविधाज्ञेया: पापलिङ्गा निरुदका भयं उत्कापातोऽथ निर्घाताः दिग्दाहा गृहयुद्धं निवृत्तिश्च ग्रहणं ग्रहाणां चरितं चक्रं साधूनां कोप गर्भाणामुपघाताय न
प्राह्मा
(गर्भास्तुविविधाज्ञेयाः) गर्भ विविध प्रकार के जानना चाहिये ( यदाशुभा ) वो
संशयः ॥ ९ ॥ पांशुवृष्टयः । चन्द्रसूर्ययोः ॥ १० ॥
सम्भवम् ।
विचक्षणैः ॥ ११ ॥