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द्वादशोध्यायः
अथात: सम्प्रवक्ष्यामि गर्भान् सर्वान् सुखावहान्।
भिक्षुकाणां विशेषेण परदत्तोप जीविनाम् ॥१॥ (अथात:) अब मैं (सर्वान्) सबको (सुखावहान्) सुखकी प्राप्ति के लिये (गर्भान्) गर्भोको (सम्प्रवक्ष्यामि) अच्छी तरह से कहूँगा (विशेषण) विशेष रीति से (परदत्तोप जीविनाम्) परदत्त भिक्षा पर निर्भर ऐसे (भिक्षुकाणां) साधुओंके लिये।
भावार्थ-अब मैं सबको सुख देने वाले ऐसे गर्मों के लक्षण व उनके फल को कहूँगा विशेष रीति से जिनका आहार पानी श्रावकाश्रित है ऐसे साधुओं के लिये कहूँगा, क्योंकि वे ही तो स्वयंको और पर को समार्ग पर ले जाने वाले है॥१॥
ज्येष्ठा मूलममावस्यां मार्गशीर्ष प्रपद्यते।
मार्गशीर्ष प्रतिपादि गर्भाधानं प्रवर्तते॥२॥ (मार्गशीर्ष) मार्गशीर्ष (अमावस्यां) अमावश्या को (ज्येष्ठामूलम्) ज्येष्ठा नक्षत्र या मूल नक्षत्र (प्रपद्यते) होता है वा (मार्गशीर्षप्रतिपदि) मार्गशीर्ष प्रतिपदाको (गर्भाधानं प्रवर्तते) गर्भाधान होता है।
भावार्थ-जब मार्गशीर्ष अमावश्याको ज्येष्ठा नक्षत्र हो या मूल नक्षत्र हो अथवा मार्गशीर्ष द्वितीया हो तब आकाश में गर्भधान होता है गर्भ दिखाई देते है॥२॥
दिवा समुत्थितो गर्भो रात्रौ विसजते जलम।
रात्रौ सुमुत्थितश्चापि दिवा विसृजते जलम् ।। ३।। (दिवा समुत्थितो) दिनमें दिखने वाले (गर्भो) गर्भ (रात्रौ) रात्रीमें (जलम्) जलकी (विसृजते) वर्षा करते हैं (चापि) और भी (रात्रौ) रात्रिमें (समुत्थितः) दिखने वाले गर्भ (दिवा) दिनमें (जलम्) जलको (विसृजते) बरसते हैं।
भावार्थ:-यदि दिन में गर्भ उठकर दिखे तो समझो वो गर्भ रात्रिमें अवश्य