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भद्राहुरिका
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ही भर जाते हैं । धान, गेहूँ, जूट और तिलहनकी फसल विशेषरूपसे उत्पन्न होती है । व्यापारके लिए यह वर्ष साधारणतया अच्छा होता है। अनुराधामें प्रथम वर्षा होने से गेहूँ में एक प्रकारका रोग लगता है जिससे गेहूँकी फसल मारी जाती है । यद्यपि गन्ना की फसल बहुत ही अच्छी उत्पन्न होती है। व्यापारकी दृष्टिसे अनुराधा नक्षत्रकी वर्षा बहुत उत्तम है। इस नक्षत्रमें वर्षा होनेसे व्यापारमें उन्नति होती है। देशका आर्थिक विकास होता है तथा कला-कौशलकी भी उन्नति होती है। ज्येष्ठ नक्षत्रमें प्रथम वर्षा होनेसे पानी बहुत कम बरसता है, पशुओंको कष्ट होता है। तृणकी उत्पत्ति अनाजकी अपेक्षा कम होती है, जिससे पालतू पशुओंको कष्ट उठाना पड़ता है। मवेशीका माल सस्ता भी रहता है। दूधकी उत्पत्ति भी कम होती है, उक्त प्रकारकी वर्षा देशकी आर्थिक क्षति की द्योतिका है। धन-धान्यकी कमी होती है, संक्रामक रोग बढ़ते हैं। चेचकका प्रकोप विशेषरूपसे होता है। समशीतोष्णवाले प्रदेशोंको मौसम बदल जानेसे यह वर्षा विशेष कष्टकी सूचिका है। तिलहन और तेलका भाव महँगा रहता है, घृतकी भी कमी रहती है तथा प्रशासक और बड़े धनिक व्यक्तियोंको भी कष्ट उठाना पड़ता है । सेनामें परस्पर विरोध और जनतामें अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं। साधारण व्यक्तियोंको अनेक प्रकारके कष्ट उठाने पड़ते हैं। आश्विन और भाद्रपदके महीनों में केवल सात दिन वर्षा होती है तथा उक्त प्रकारकी वर्षा फाल्गुन मासमें घनघोर वर्षाकी सूचना देती है जिससे फसल और अधिक नष्ट होती है। चैत्रके महीनोंमें जल बरसता है तथा ज्येष्ठमें भयंकर गर्मी पड़ती है जिससे महान कष्ट होता है।
यदि मूल नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो उस वर्ष सभी महीनोंमें अच्छा पानी बरसता है। फसल भी अच्छी उत्पन्न होती है। विशेषरूपसे भाद्रपद और आश्विनमें समय पर उचित वर्षा होती है, जिससे दोनों ही प्रकारकी फसलें बहुत अच्छी उत्पन्न होती हैं। व्यापारके लिए भी उक्त प्रकारकी वर्षा अच्छी होती है। खनिज पदार्थ और वन-सम्पत्तिकी वृद्धिके लिए उक्त प्रकारकी वर्षा अच्छी होती है। मूल नक्षत्रकी वर्षा यदि गर्जनाके साथ हो तो माघमें भी जलकी वर्षा होती है। बिजली अधिक कड़के तो फसलमें कमी रहती है। शान्त और सुन्दर मन्द मन्द वायुके चलते हुए वर्षा हो तो सभी प्रकारकी फसलें अत्युत्तम होती हैं । धानकी उत्पत्ति अत्यधिक