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प्रस्तावना
और इसका रचनाकाल पूर्व अध्याय के रचनाकाल के बाद का होगा।
मुख्तार साहब ने तृतीय खण्ड के श्लोंकों की समता मुहूर्त चिन्तामणि, पाराशरी, नीलकण्ठी आदिशों में दिखजाई है और तिज किया है कि हम खण्ड का विषय नया नहीं है, संग्रहकर्ता ने उक्त ग्रन्थ से श्लोक लेकर तथा उन श्लोकों में जहाँ-तहाँ शुद्ध या अशुद्ध रूप में परिवर्तन करके अव्यवस्थित रूप में संकलन किया है। अत: मुख्तार साहब ने इस ग्रन्थ का रचनाकाल १७ वीं शताब्दी माना है।
इस ग्रन्थ के रचनाकाल के सम्बन्ध में मुनि जिनविजयजीने सिंधी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित भद्रबाहु संहिता के किञ्चित् प्रस्ताविक में लिखा है-"ते विषे म्हारो अभिप्राय जरा जुदो छे हुँ एने पैंदामी सदीनी पछीनी रचना नथी समजतो आछामाँ ओछी १२ मी सदी बेटली जूनी तो ए कृति छेज, ऐवा म्हारो साधार अभिमत थाय छे, म्हारा अनुमाननो आधार ए प्रमाणे छे-पाटगना बाडी पार्श्वनाथ भण्डारमाथी जे प्रति म्हने मली छे ते जिनभद्र सूरिना समयमां—एटलेके वि० सं० १४७५-८५ ना आसामा लखाएली छे, एम हुँ मार्नु , कारण के ए प्रतिमा आकार-प्रकार, लखाण, पत्रांक आदि बधा संकेतो जिनभद्रसूरिए ललेखाबेला सेकडो ग्रन्थ तो तद्दन मलता अनेतेज स्वरूपता छे, जेम म्हें 'विज्ञप्ति त्रिवेणि' नी म्हारी प्रस्तावनामा जणाव्युं छे तैम जिनभद्रसूरिए खंभात, पाटण, जैसलमेर आदि स्थानो मौं म्होटा ग्रन्थ-भण्डायें स्थापन कर्या हतां अने तेना, तेमणे नष्ट थतां जूनां एवां सेंकडो ताडपत्रीय पुस्तकोनी प्रतिलिपिओ कागल उपर उतरावी उतरावी ने नूतन पुस्तकोनो संगह को हतो, एक भडारमाथी मलेली भद्रबाहु संहितानी उक्त प्रति पण ऐज रीते कोई प्राचीन ताडपत्रनी प्रतिलिपि रूपे उतारेली छे, कारण के ए प्रतिमा ठेकठेकाणे एवी केटलीय पंक्तिओ दृष्टिगोचर धाय छे, जेमा लहियाए पोताने मलली आदर्श प्रतिमा उपलब्ध थता खंडित के त्रुटित शब्दों अने वाक्यो माटे, पाछलथी कोई तेनी पूर्ति करी शके ते सारे ..... आ जातनी अक्षरविहीन मात्र शिरोरेखाओ दोरी पुकेली छे, एनो अर्थ ए छे के ए प्रतिमा लहियाने जे ताडपत्रीय प्रति मलीहती ते विशेष जीर्ण थऐली होवी जोईए अने तेमां ते ते स्थलना लखाणना अक्षरो, ताडपत्रोनो किनारो खरी पडवाथी जता रहेला के भुंसाई गएला होवा जोइए-ए उपरथी एबुं अनुमान सहेजे करी शकाय के ते जूनी तडपत्रीय प्रति पण ठीक-ठीक अवस्थाए पहोंची गएली होवी जोईए, आ रीते जिनभद्रसूरिना समयमाँ जो ए प्रति ३००-४०० वर्षों जेटली जूनी होय–अने ते होवानो विशेष संभव छेज-तो सहेजे ते मूलं प्रति विक्रममना ११ मा १२ मा सैका जेटली जूनी होई शके। पाटण अने जेसलमेरना जूना भंडारोमा आवी जातनी जीर्ण-शीर्ण थएली ताडपत्रीय प्रतियो तेमज तेमना उपरथी उतारवामां आवेली कागलनी सेंकडो प्रतियो म्हारा जोवामा आवीछे।"