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अष्टमोऽध्यायः
के आकार ( व्याघ्र ) चीता के रूप होकर (महता भीम शब्देन ) बहुत ही भयंकर गर्जना के साथ (द्रवन्ति) जगाते हैं तो (ते) से (म:) ऐघ (रूधियं) रुधिर की ( वर्षान्त) वर्षा करते हैं ।
भावार्थ — जो मेघ सिंह, शृगाल, बिल्ली व चीता के आकार होकर महान भयंकर गर्जना करते हुऐ वर्षा करते हैं तो मेघ रक्त की वर्षा करते हैं ॥ १६ ॥
पक्षिणश्चापि क्रव्यादा वा पश्यन्ति समुत्थिताः । मेघास्तदाऽपि रुधिरं वर्षं वर्षन्ति से
मेघ यदि (पक्षिण) पक्षीओं के आकार व ( क्रव्यादा ) उड़ने वाले पक्षीयों के आकार (समुत्थिताः) उपस्थित होकर (पश्यन्ति ) दिखाई देते है (मेघाः) आकाश में ( तदाऽपि ) तो भी (ते) वे (घनाः) मेघ ( रुधिरं ) रक्तकी ( वर्षं) वर्षा ( वर्षन्ति ) बरसते हैं।
घनाः ।। १७ ॥
भावार्थ-यदि मेघ दुष्ट पक्षियों के आकार जो आकाश में उड़ते हैं होकर दिखाई पड़े तो भी समझो वहाँ पर रक्त की वर्षा होगी ॥ १७ ॥
अनावृष्टि भयं घोरं दुर्भिक्षं मरणं निवेदयन्ति ते मेघा ये भवन्ती
तथा।
दृशादिवि ॥ १८ ॥
(ते) वे (मेघा ) मेघ, (अनावृष्टि) अनावृष्टि करते है (घोरं ) घोर ( भयं ) भयको (तथा) तथा ( दुर्भिक्षं) दुर्भिक्ष व ( मरणं) मरण को (निवेदयन्ति ) निवेदन करते हैं (ये) इन (मेघा ) मेघों का (हशा) ऐसा ही (दिवि) फल ( भवन्ति ) होता
है।
भावार्थ — वे मेघ, जो उपर्युक्त कह आये है, उन सबका फल, अनावृष्टि करना भय उपस्थित होना दुर्भिक्षका पड़ जाना वा मरण की सूचना देते है इन मेघों का ऐसा ही फल होता है ऊपर जो मेघों की दृष्ट पक्षियों के आकार की कही है वैसे दिखे तो समझो मरणादिक के भय की सम्भावना बनती है ॥ १८ ॥
करणे मेघाः
शकुने शुभे ।
तिथौ मुहूर्त्त नक्षत्रे सम्भवन्ति पापदास्ते भयङ्कराः ॥ १९ ॥ (अशुभ) अशुभ (तिथौ ) तिथी, (मुहूर्त्त ) मुहूर्त ( करणे) करण, (नक्षत्रे) नक्षत्र
यदा